पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX ( Ra, La)
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Puraanic contexts of words like Raakshasa/demon, Raaga, Raajasuuya, Raajaa/king, Raatri/night, Raadhaa/Radha etc. are given here. राक्षस अग्नि ८४.३२(८ देवयोनियों में द्वितीय), गरुड १.२१७.१७(असूया से राक्षस योनि प्राप्त होने का उल्लेख), २.१०.६(राक्षसों का भोजन आमिष होने का उल्लेख), गर्ग ३.१०(गोवर्धन शाला के स्पर्श से राक्षस द्वारा दिव्य रूप की प्राप्ति, पूर्व जन्म में वैश्य का वृत्तान्त), नारद २.२७+(काष्ठीला उपाख्यान के अन्तर्गत राक्षस - राक्षसी वृत्तान्त), २.६३.७७, पद्म ६.१४.६३(दु:स्वप्न दर्शन से अनुतप्त वृन्दा का वन में गमन, राक्षस का दर्शन, राक्षस द्वारा वृन्दा को पति मरण का समाचार देना), ६.१५.४(तापस वेशधारी विष्णु द्वारा राक्षस के चंगुल से वृन्दा का मोचन), ६.१२७.५८(काञ्चनमालिनी अप्सरा का राक्षस को धर्मोपदेश, स्वर्ग प्राप्ति), ६.२०४.६८(निगमोद्बोधक तीर्थ के जल प्राशन से विकट नामक राक्षस को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का स्मरण, मुक्ति), ६.२०६+, ७.४.८२(गङ्गासागर माहात्म्य के अन्तर्गत बृहद्ध्वज नामक राक्षस तथा भीमकेश नामक राजपत्नी की मुक्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३३ (हिमवान् पर्वत पर राक्षसों, पिशाचों, यक्षों के वास का उल्लेख), २.३.७.३७(खशा - पुत्र, स्वरूप का वर्णन), २.३.८.५७(पौलस्त्य), भविष्य १.५७.३(राक्षस हेतु मैरेय सहित मांसौदन बलि का उल्लेख), २.२.२०.५५(राक्षस गण के नाम), ३.४.२३.५३(राक्षसारि : सूर्य का अंश, अयोध्या का राजा), भागवत ७.१.८(तम से यक्षों व राक्षसों की वृद्धि का उल्लेख), ११.२५.१९(तमोगुण की वृद्धि से राक्षसबल की वृद्धि), मत्स्य १९.८(राक्षस का भोजन आमिष होने का उल्लेख), १४८, मार्कण्डेय १५(दुष्कृत्य के फलस्वरूप राक्षस योनि प्राप्त होने का उल्लेख), वराह १६७.१०(अनाचार - रत विप्र को राक्षस योनि की प्राप्ति, अन्य विप्र द्वारा एक स्नान के फल दान से राक्षसत्व से मुक्ति की कथा), २०१(राक्षस - किङ्कर युद्ध का वर्णन), वामन ११(सुकेशी नामक राक्षस का ऋषियों से प्रश्न, ऋषियों द्वारा धर्मोपदेश), ६९.४९(राक्षसपुङ्गव : एक राक्षस, बल नामक प्रमथ के साथ युद्ध), वायु ९.१७, ६९.७५(राक्षसों की खशा से उत्पत्ति व नामकरण), ६९.१२७, ६९.१६४(खशा - पुत्र राक्षसों के नाम), ७०.४६, विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.१५(राक्षसों के रूप का कथन : उत्कच आदि), स्कन्द ३.१.११(त्रिवक्र नामक राक्षस की पत्नी सुशीला में शुचि मुनि द्वारा बीज प्रदान से कपालाभरण नामक राक्षस की उत्पत्ति, इन्द्र को कपालाभरण के वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति की कथा), महाभारत अनुशासन १२४, योगवासिष्ठ ३.४९.३७(विदूरथ द्वारा सिन्धु राजा पर राक्षस अस्त्र का प्रयोग), वा.रामायण ७.४.११(हेति, प्रहेति प्रभृति राक्षसों की उत्पत्ति), ७.४.१३(राक्षस शब्द की निरुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.४२४, १.४८०, १.५११, २.१५७.२२, २.१७६.४९(ज्योतिष में योग), २.२२३.४५(राग का रूप), ३.९.९२(तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा राक्षसों से मुक्ति हेतु सूर्य की गति को अवरुद्ध करने का वर्णन ), ३.३०.९, ३६१, ४.३७.८६(परदेह भक्षक इस देह का नाम), कथासरित् ५.२.१९६(हिमालय शिखर पर त्रिघण्ट नगर वासी स्तम्भजिह्व नामक राक्षसराज की कन्या विद्युत्प्रभा से अशोकदत्त के विवाह की कथा), ६.३.१२८(राक्षसी और बच्चों के वार्तालाप को सुनकर कीर्त्तिसेना द्वारा वसुदत्त नामक राजा के भीषण रोग तथा उसकी रोगमुक्ति के उपाय को जानना), ७.८.१३८(राक्षस द्वारा वीरभुज राजा की हत्या कर राजपत्नी मदनदंष्ट्रा को अपनी पत्नी बनाना, इन्दीवरसेन द्वारा राक्षस का वध, राक्षस की बहिन खड्गदंष्ट्रा से विवाह), १७.३.२८(राक्षसियों द्वारा पद्मावती का बन्धन, मुक्ताफलकेतु द्वारा पद्मावती का मोचन ) raakshasa/ rakshasa
राक्षसी नारद २.२७+(काष्ठीला उपाख्यान के अन्तर्गत राक्षस - राक्षसी का वृत्तान्त), पद्म ६.२०६+(विप्र के रूप पर मुग्ध पौर स्त्रियों को राक्षसीत्व की प्राप्ति, कमण्डलुगत निगमोद्बोध तीर्थ के जलपान से मुक्ति का वर्णन), स्कन्द २.४.२४(द्विज के पुण्य दान से राक्षसी की मुक्ति, राक्षसी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वा.रामायण ५.२२(अशोक वाटिका में सीता की रक्षा में नियुक्त राक्षसियों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४(एषणा रूपी राक्षसी ) raakshasee/ rakshasi
राग अग्नि ३४६.१९(काव्यगुण विवेचन के अन्तर्गत उभयगुण के ६ भेदों में से एक राग की परिभाषा व प्रकारों का कथन), गर्ग ५.२१(राग का वेद नगर में निवास, नारद की स्त्रियों में आसक्ति पर रागों के अङ्ग भङ्ग होना), ७.४३.३५(रागों के वर्ण/रंग), ७.४४(रागिनियों व राग - पुत्रों के नाम), ७.४५(राग परिवार द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत १.१७.३७(शुक द्वारा राग - विराग का निरूपण), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६१(प्रिय राग वृद्धि के लिए मणिसार दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.४.३.४६(राग - विराग का निरूपण), लिङ्ग २.९.३२(महामोह की राग संज्ञा का उल्लेख), विष्णु १.८.३३(रति - पति), स्कन्द ६.२५४.२७(रागों की शिव के ताण्डव नृत्य से उत्पत्ति, रागों की भार्याओं के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४५(राग के राक्षस का रूप होने का उल्लेख ) raga/ raaga
रागिणी गर्ग ७.४५.१०-२०(भैरव, मेघमल्लार, दीपक, मालकोश, श्री तथा हिण्डोल राग की रागिनियों द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति), वामन ५१(मेना - पुत्री, ब्रह्मा के शाप से सन्ध्या होना), ७५.४१(विष्णु द्वारा ४ युवतियों की सृष्टि, उनमें से रक्तवर्णा जयश्री युवती का रागिणी नाम ) raaginee/ ragini
राज- गर्ग ६.१३(राजमार्गपति : भ्रष्ट वैश्य, गोमती - सिन्धु सागर में वैश्य के मांस के पतन से उद्धार), ७.१३.१(राजपुर : प्रद्युम्न की राजपुर नरेश शाल्व पर विजय), ९.३.३८(राजबन्दिक : एक याचक, कार्पटि को शाटक/साडी देकर बिजौरा नींबू ग्रहण और राजा को भेंट), १०.२४.६(राजपुर : अनिरुद्ध की राजपुर नरेश अनुशाल्व पर विजय), भविष्य ३.४.१५.८(राजराज : यक्षशर्मा ब्राह्मण का शिवपूजन प्रभाव से मृत्यु - पश्चात् कर्णाटक में राजराज नामक राजा बनना, पश्चात् जन्मान्तर में कुबेर बनना), स्कन्द १.२.६२.१९(राजमाष : शिव द्वारा तण्डुल - मिश्रित राजमाष को क्षेत्रपालों हेतु नैवेद्य नियत करने का उल्लेख), कथासरित् ७.२.४८(राजदत्ता : रत्नाधिपति - भार्या, शीलवती - स्वसा), ७.३.२०७(राजभञ्जन : विद्याधर, अनुरागपरा नामक विद्याधरी पर अनुरक्त ) raaja
राजभट्टारक स्कन्द ७.१.११.२१५(प्रभास में स्थित सूर्य - पुत्र रेवन्त का नाम), ७.१.१६०(राजभट्टारक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) raajabhattaaraka/ rajabhattaraka
राजयक्ष्मा द्र. वास्तुमण्डल
राजर्षि ब्रह्माण्ड १.२.३५.१०२(राजर्षि के लक्षण), २.३.६६.८९(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों के नाम), वायु ६१.८७(राजर्षि की निरुक्ति), ९१.११५(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों के नाम ), महाभारत अनुशासन, ९४, १६५, raajarshi/ rajarshi
राजवती विष्णु १.१०.५(राजवान् : प्राण के दो पुत्रों में से एक, भृगु वंश), कथासरित् ७.२.११३(राजवती : देवप्रभ नामक गन्धर्व की पत्नी, सिद्ध के शाप से देवप्रभ का मनुष्य योनि में राजा रत्नाधिपति तथा राजवती का उसकी पत्नी राजदत्ता बनना ), द्र. वंश भृगु raajavatee/ rajavati
राजसूय गर्ग ७.२+ (राजा उग्रसेन के राजसूय यज्ञ का वर्णन), ७.४९(उग्रसेन के राजसूय यज्ञ का समापन), पद्म १.३७.१५४(राम का भरत के समक्ष राजसूय यज्ञ करने के विषय में अपने विचारों को प्रस्तुत करना, भरत द्वारा युक्तिपूर्वक राम की यज्ञ से निवृत्ति), ६.२२२.८०(युधिष्ठिर - कृत राजसूय यज्ञ का उल्लेख), ब्रह्म १.७.१३(सोम के राजसूय यज्ञ में ऋत्विज आदि का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.६५.२२(सोम का राजसूय यज्ञ), भागवत १०.७४(युधिष्ठिर द्वारा राजसूय में कृष्ण की अग्रपूजा, कृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध, पाण्डवों द्वारा यज्ञ में करणीय कार्य), मत्स्य २३(चन्द्रमा का राजसूय यज्ञ), वायु १०४.८४( राजसूय यज्ञ की शिरोदेश में स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१, ३.३४१.१९२(रत्न व सुवर्ण निर्मित आभूषण दान से राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख), शिव ५.१३.२१(शिव कथा श्रवण से राजसूय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द २.७.२.२०(शीतल जल दान से राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख), ४.१.१४.३०(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों का कथन), ५.१.२६.७०(मन्दाकिनी कुण्ड में स्नान आदि से सौ राजसूय यज्ञों के समान फल प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.३.३३(ढुण्ढेश्वर देव के पूजन से सौ राजसूय यज्ञों के समान पुण्य प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.१४.४०(कुटुम्बेश्वर दर्शन से सहस्र राजसूय यज्ञों के समान फल प्राप्ति), ५.२.६९.५७(खङ्गमेश्वर लिङ्ग दर्शन से सहस्र राजसूय यज्ञों से अधिक फल प्राप्ति), ७.१.२०.७४(सोम - कृत राजसूय यज्ञ के उद्गाता आदि ऋत्विज), वा.रामायण ७.८३(राम द्वारा राजसूय यज्ञ के अनुष्ठान की इच्छा, भरत द्वारा निवारण), हरिवंश ३.२.१४(जनमेजय का व्यास से पाण्डव - कृत राजसूय यज्ञ विषयक प्रश्न, व्यास द्वारा सोम, वरुण व हरिश्चन्द्र - कृत राजसूय यज्ञों का उल्लेख करते हुए युधिष्ठिर - कृत राजसूय यज्ञ को कौरवों के विनाश का हेतु बताना), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४६, लक्ष्मीनारायण १.४४२, ३.३५.१२४(बृहद्धर्म राजा को राजसूय की दीक्षा हेतु आचार्य नारायण का प्राकट्य ) raajasooya/raajasuuya/ rajsuya राजस्थल स्कन्द ५.२.७४.१(राजस्थलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, रिपुञ्जय द्वारा अतिवतष्टि - अनावृष्टि भय निवारण हेतु राजस्थलेश्वर लिङ्ग की पूजा),
राजस्वामी स्कन्द ६.९८
राजा अग्नि २२०+ (राजा के अभिषेक की विधि, राजा के सहायकों का विचार, राजा के अनुजीवियों का कर्तव्य), २२३(राजा द्वारा कर योग्य धन का विचार), २२५(राजा द्वारा पालनीय धर्म), २३३(राजा के शत्रुओं के प्रकारों का वर्णन), २३५(राजा की नित्यय चर्या का वर्णन), ३६६(राज्य से सम्बन्धित शब्दों के पर्यायवाची शब्द), गरुड १.१११+ (राजा के कर्तव्य), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३५.७७, भविष्य १.२७(राजा के शुभाशुभ शरीर लक्षण), मत्स्य २१५(राजा के कर्तव्य, राजधर्म का निरूपण), २१६(राजकर्मचारी के धर्म का वर्णन), २२०(राजा का धर्म), २३८(राजा की मृत्यु के सूचक लक्षण व शान्ति), २४०(राजा के विजयार्थ यात्रा विधान), विष्णुधर्मोत्तर २.३(पुष्कर प्रोक्त राजा के कर्तव्य), २.२४(राजा के सहायकों के कृत्य), २.२८(राजा का भोजन, राजा की विष आदि से रक्षा), २.६१(राजधर्म), २.७२(राजा द्वारा अपराध का दण्ड), २.१४५(राज्यकर्म), २.१५१(आह्निक कर्म), ३.३२३(राजा का धर्म), ३.३२४(राजा का प्रजा से व्यवहार), स्कन्द ५.३.१३३.२७(राजा की वृक्ष से, ब्राह्मणों की मूल से, भृत्यों की पत्तों से तथा मन्त्रियों की शाखाओं से उपमा), ५.३.१५९.८(दुरात्माओं का शास्ता), महाभारत शान्ति ५६+, वा.रामायण २.६७(राजा के अभाव में देश की स्थिति), ६.६३(कुम्भकर्म द्वारा रावण को राजा के कर्तव्यों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१२७, २.१९७.४९, ३.२४, raajaa/ raja
राजीव लक्ष्मीनारायण ३.१९३.१(विप्रों का धन हरण करने से राजा राजीव को शाप प्राप्ति, अरण्य वास, राजीव - पत्नी कुन्दनदेवी के संकल्प से राजीव की मुक्ति का वृत्तान्त ) raajeeva/ rajiva
राज्ञ भविष्य १.१२४(सूर्य - अनुचर, कार्तिकेय का अवतार, धर्म रूप )
राज्ञी अग्नि २७३.२(सूर्य - पत्नी, रैवत - पुत्री, रेवन्त - माता), पद्म ५.६७.३८(विमल - पत्नी), भविष्य १.७९.१८(सूर्य - पत्नी संज्ञा के राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री व प्रभा प्रभृति अनेक नामों का उल्लेख), मत्स्य ११(रेवत - पुत्री, सूर्य - पत्नी, रैवत - माता ), स्कन्द ७.१.११, कथासरित् १.६.१२५(विष्णुशक्ति - दुहिता राज्ञी द्वारा राजा को पाण्डित्य में नीचा दिखाने का कथन ) raajnee/ragyi राज्यधर कथासरित् ७.९.२३(मय दानव के आविष्कृत यन्त्रों के निर्माण में कुशल तक्षा/बढई )
राज्यपालि लक्ष्मीनारायण ३.८६
राज्यवर्धन मार्कण्डेय १०९(दम - पुत्र )
राज्याभिषेक अग्नि १२६, विष्णु ५.२१(उग्रसेन के राज्याभिषेक का वर्णन), ५.३८(परीक्षित् के राज्याभिषेक का वर्णन), raajyaabhisheka/ rajyabhisheka
राढ कथासरित् १२.७.३५(नगरी, उग्रभट राजा द्वारा सेवित), १२.७.२५५(वही),
राणिका लक्ष्मीनारायण २.२६७.४
राति स्कन्द २.६.३.५२(विष्णुरात : परीक्षित का उपनाम ), ३.१.४९.७७(यक्षों को इन्द्रिय अराति बाधा), द्र. देवरात
रात्रि कूर्म १.७.४२(ब्रह्मा के त्यक्त शरीर से रात्रि की उत्पत्ति), गरुड १.२१.४, १.१२८.१०(नक्षत्र दर्शन से नक्त होने का उल्लेख), नारद १.६६.१२३(सेनानी गणेश की शक्ति रात्रि का उल्लेख), १.९१.७९(वामदेव शिव की १०वीं कला), पद्म १.४३+ (रात्रि देवी द्वारा पार्वती की देह में प्रवेश से पार्वती का काली बनना, पार्वती द्वारा कृष्णता त्याग पर एकानंशा/कौशिकी बनना), मत्स्य १५७(पार्वती के शरीर से रात्रि की उत्पत्ति, रात्रि का विन्ध्यवासिनी/कौशिकी देवी बनना), वराह ६७.४(सित असित/श्वेत - श्याम द्विवर्णा नारी के रूप में रात्रि का उल्लेख), वायु ९.१, विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३(केशपाशों में रात्रि की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द १.२.२२.६४(रात्रि देवी का मेना - पुत्री बनना), योगवासिष्ठ ६.२.८१(कालरात्रि), वा.रामायण ४.३०.४६(रात्रि की नारी से उपमा का कथन), लक्ष्मीनारायण २१२८, ३.९.९२(तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा राक्षसों से मुक्ति हेतु सूर्य की गति को अवरुद्ध करने का वर्णन ), द्र. कालरात्रि, नवरात्र, पञ्चरात्र, शिवरात्रि raatri/ ratri
राथ्यासा लक्ष्मीनारायण १.३१२
राधा गर्ग १.१५.६६(राधा शब्द की गर्ग द्वारा तात्त्विक व्याख्या, राधा का कृष्ण से विवाह), १.१६.२५(महान्/जगदंकुर की शक्ति राधा का उल्लेख, राधा के सगुणा माया होने का उल्लेख), २.१८(राधा द्वारा कृष्ण की महिमा का कथन), २.१९+ (राधा की कृष्ण के साथ रासक्रीडा, गोपियों द्वारा राधा का शृङ्गार व भेंट का वर्णन), ४.९(राधा द्वारा यज्ञसीता रूपी गोपियों को एकादशी व्रत के माहात्म्य का कथन), ६.१६(कृष्ण वियोग से पीडित राधा द्वारा सिद्धाश्रम तीर्थ में स्नान व कृष्ण से मिलन, कृष्ण की अन्य पटरानियों की राधा से ईर्ष्या ?), १०.४२.४८(राधा के स्वरूप का कथन), देवीभागवत ९.१.४४(पञ्चम प्रकृति देवी राधा की महिमा व स्वरूप का कथन), ९.२.५४(राधा का आविर्भाव), ९.११, ९.१२.१८(गङ्गा के कृष्णाङ्ग से समुद्भूत और राधाङ्ग द्रव से संयुक्त होने का कथन), ९.१७.४१ (तुलसी द्वारा ब्रह्मा से राधा के भय से मुक्ति हेतु प्रार्थना, ब्रह्मा द्वारा तुलसी को भयमोचक षोडशाक्षर राधा मन्त्र प्रदान), ९.५०(राधा के मन्त्र, ध्यान व पूजा विधि), नारद १.८२(राधा - कृष्ण युगल सहस्रनाम), १.८३.१३(राधा द्वारा सृष्टि हेतु पञ्चधा रूप धारण), १.८८(राधा की कलाभूत १६ देवियों का वर्णन), १.११७.४१(नभस्य मास की शुक्ल अष्टमी में राधा व्रत का निर्देश), २.५९.४७(स्वयं का राधा - माधव स्वरूप में चिन्तन करना), पद्म ४.७(भाद्रपद शुक्ल अष्टमी में राधाष्टमी व्रत का माहात्म्य : लीलावती की पापों से मुक्ति; वृषभानु की अयोनिज कन्या के रूप में राधा का जन्म), ४.२०(कार्तिक में राधा - दामोदर पूजा का माहात्म्य : कलिप्रिया वेश्या की मुक्ति), ५.७०.२(मूल प्रकृति राधा व गोविन्द के परित: स्थित ललिता आदि प्रकृति अंशों का कथन), ५.७१(राधा व कृष्ण का माहात्म्य), ५.७१.३०(नारद द्वारा भानु गोप की कन्या में दिव्यत्व के दर्शन का वृत्तान्त), ५.७४.१०४(अर्जुन की राधा स्वरूप दर्शन पूर्वक स्त्रीत्व प्राप्ति से कृष्ण संग का वर्णन), ५.७७(राधा का स्वरूप व राधा के नाम), ब्रह्मवैवर्त्त १.५(राधा की प्रकृति से उत्पत्ति), १.१९.३४(राधिकापति कृष्ण से वायव्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना), २.१.१(प्रकृति कहलाने वाली ५ देवियों में से एक), २.१०.४९(राधा द्वारा सरस्वती को हारसार देने का उल्लेख), २.११(गङ्गा के रूप पर मोहित कृष्ण को राधा द्वारा उपालम्भ), २.४८(छाया रूप में कलावती व वृषभानु - पुत्री बनना), २.४८.२९(राधा की कृष्ण से उत्पत्ति), २.४८.४०(राधा नाम की निरुक्तियां ), २.४९(सुदामा व राधा द्वारा एक दूसरे को शाप दान), २.४९.४२(राधा का कृष्ण के साथ विवाह का कथन), २.५४.११४(राधा द्वारा रासमण्डल में डिम्भ की प्रसूति करने व महाविराट् रूपी डिम्भ को त्यागने का कथन), २.५५+ (राधा की पूजा व राधा स्तोत्र), २.५५.१०(राधा का स्वरूप), २.५६.१३५(राधा नाम में रा अक्षर के अर्थ), २.५६.१४०(विभिन्न दिशाओं में राधा कवच), ४.२(राधा की श्रीदामा से कलह), ४.६(राधा की कृष्ण से सायुज्यता), ४.१२.१८(राधापति कृष्ण से नासिका की रक्षा की प्रार्थना), ४.१३.१०६(राधा नाम की निरुक्ति), ४.१५(राधा का स्वरूप, कृष्ण से मिलन व विवाह), ४.१७.२१७(राधा के षोडश नामों की निरुक्ति), ४.२७(राधा का कृष्ण से संवाद), ४.२७.९६(वस्त्र चोरी पर जल में निमग्न राधा द्वारा कृष्ण का ध्यान व स्तोत्र), ४.२७.१९३(पार्वती द्वारा राधा को वरदान), ४.५२(राधा का कृष्ण से विरह, रास), ४.६६(राधा को कृष्ण से वियोग का स्वप्न), ४.८४.६०(राधा की कृष्ण के वाम भाग से उत्पत्ति), ४.८६.३५(वृन्दा का वृषभानु - सुता व रापाण - भार्या रूप में राधा की छाया बनना), ४.९२(गोकुल गमन पर उद्धव का राधा से मिलन, उद्धव द्वारा राधा की स्तुति), ४.९७(राधा द्वारा उद्धव को ज्ञान प्रदान करना), ४.१२४(राधा का कृष्ण से पुनर्मिलन), ४.१२६(द्वारका स्थापना के पश्चात् कृष्ण का राधा से व्रज में मिलन), ब्रह्माण्ड २.३.४२(राधा द्वारा गणेश के कपोल का स्पर्श), वराह १६४, शिव २.३.२.३०(सप्तर्षियों के क्रोध से पितरों की ३ कन्याओं मेना, धन्या व कलावती का क्रमश: पार्वती, सीता व राधा रूप में अवतरण?), २.३.२.४०(राधा के कृष्ण से गुप्त प्रेम निबद्ध होने का उल्लेख), स्कन्द २.६.२.११(कालिन्दी द्वारा राधा की महिमा का कथन), ५.३.१९८.७६(वृन्दावन वन में देवी का राधा नाम से वास), ७.४.१२(राधा गोपी द्वारा कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.१७०, १.१७९, १.३०४, १.३१७, १.४२२, १.४४३.३२(पत्नीव्रत के संदर्भ में पत्नियों के राधांश होने का कथन), १.४४४(सुयज्ञ नृप द्वारा स्वपत्नी को राधा स्वरूप मानकर व्यवहार करने पर राधा का प्रसन्न होना, सुयज्ञ नृप की पत्नीव्रत संज्ञा), १.४४४.१९(राधा शब्द की निरुक्ति : रा - स्मृद्धि, धा - धृति), १.४६७.६९(भाण्डीर वट पर राधा के कृष्ण से विवाह का उल्लेख, राधा द्वारा कृष्ण का गोलोक की गायों के दुग्ध से स्नान कराना), १.५१४.१८(केशग्रन्थि विकीर्ण करने के कारण राधा द्वारा सखी नागलीला को नदी आदि बनने का शाप, नागलीला नदी का महत्त्व), २.३९.२९(छठे वर्ष के आरम्भ में अष्टमी को राधा द्वारा बालकृष्ण की आराधना का वर्णन), २.८१.४९(तुङ्गभद्रा नदी के राधा रूप का उल्लेख), २.१५४.१, २.१६६.३(गोलोक में राधा की विकुण्ठा नामक पुत्री व सप्तसागरों के पुत्र रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख), २.२९७.८४(राधा के गृह में शय्या पर स्थित कृष्ण के दर्शन), ३.१८(पुण्यरात द्विज व उसकी पत्नी राधनिका की तपस्या का वृत्तान्त), ३.२१०(यज्ञराध नामक भक्त पुष्कस का ब्रह्मायनर्षि साधु से समागम, मोक्ष प्राप्ति), ४.२६.५६(राधा कान्त से तृष्णा से रक्षा की प्रार्थना ), ४.१०१.७१(राधा के रायः पुत्र व ऋद्धिरया पुत्री का उल्लेख), द्र. यज्ञराध, विराध raadhaa/radha |