पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX ( Ra, La)
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Puraanic contexts of words like Ramaa, Rambha, Rambhaa, Ravi, Rashmi, Rasa/taste, Raakaa etc. are given here. रथस्वन ब्रह्माण्ड १.२.२३.७(रथस्वन की सूर्य के रथ के साथ स्थिति ) rathaswana
रथी महाभारत उद्योग १६६, कथासरित् ८.४.१२(सुनीथ के पूछने पर मयासुर द्वारा पूर्णरथी, द्विगुण रथी, त्रिगुण रथी, चतुर्गुण रथी, पञ्चगुण रथी, षड्गुण रथी तथा सप्तगुण रथी बतलाना ) rathee/ rathi
रथीतर भागवत ९.६.१(पृषदश्व - पुत्र, अङ्गिरा से पुत्र की उत्पत्ति ) ratheetara/ rathitara
रथौजा द्र. रथ सूर्य
रन्तिदेव भागवत ९.२१(संकृति - पुत्र, रन्तिदेव के आतिथ्य व्रत का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५५९, ३.७४.५६ rantideva
रन्तिनार मत्स्य ४९.७(औचेयु व ज्वलना - पुत्र, मनस्विनी - पति, अमूर्तरय, त्रिवन व गौरी - पिता, पूरु वंश, अपर नामक मतिनार व रन्तिभार), वायु ९९.१२८(रिवेयु व ज्वलना - पुत्र, सरस्वती - पति, त्रसु आदि पुत्रों के नाम ) rantinaara/ rantinara
रन्तुक वामन ३४.११(कुरुक्षेत्र तीर्थ यात्रा से पूर्व रन्तुक नामक द्वारपाल के दर्शन तथा यक्ष को प्रणाम का निर्देश ) rantuka
रमण देवीभागवत ८.१३.३४(वीतिहोत्र - पुत्र, पुष्कर द्वीप का स्वामी), स्कन्द ५.३.१९८.७८(रामतीर्थ में देवी का रमणा नाम से वास ) ramana
रमणक गरुड २.२२.५८, भविष्य ५.२०?, वायु ४५.२(रमणक वर्ष का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४७०, ramanaka
रमा गर्ग १.१६.२४(नृसिंह की शक्ति रमा का उल्लेख), २.२०(रमा द्वारा राधा को किंकिणी भेंट), देवीभागवत १२.६.१३४(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९५(सूर विष्णु की शक्ति रमा का उल्लेख), १.६६.१३६(एकपाद गणेश की शक्ति रमा का उल्लेख), १.१२०.४८(रमा एकादशी व्रत की विधि), पद्म ६.६०(कार्तिक शुक्ल रमा एकादशी के संदर्भ में चन्द्रभागा व शोभन को दिव्य योग की प्राप्ति), स्कन्द ५.१.६५.२८(रमा सर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.८.३४ (हिरण्यकशिपु की पुत्री, त्वष्टा - पत्नी, वृत्र - माता), लक्ष्मीनारायण १.१२५, १.२९६, १.३३०, २.२८३.५६(रमा द्वारा बालकृष्ण के करों व पादों में अलक्तक देने का उल्लेख), २.२९७.८४(रमा पत्नी के गृह में दुग्ध पान करते कृष्ण के दर्शन ), ३.१७.९४, ३.१००.१४१, ४.३१, ४.१०१.७०, द्र. मनोरमा ramaa
रम्भ देवीभागवत ५.२(दनु - पुत्र, करम्भ - भ्राता, अग्नि द्वारा रम्भ को इन्द्र - विजयी पुत्र प्राप्ति का वरदान, रम्भ की महिषी पर आसक्ति, महिष द्वारा घात से रम्भ की मृत्यु, रम्भ का रक्तबीज रूप में अवतरण व महिषासुर पुत्र को जन्म), ब्रह्म १.९.२(आयु व प्रभा के ५ पुत्रों में से एक - स्वर्भानुतनयायां च प्रभायां जज्ञिरे नृपाः॥ नहुषः प्रथमं जज्ञे वृद्धशर्म्मा ततः परम्। रम्भो रजिरनेनाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः॥), १.९.२७(रम्भ के अनपत्य होने का उल्लेख - रम्भोऽनपत्यस्त्वासीच्च वंशं वक्ष्याम्यनेनसः।), भागवत ९.१७.१०(आयु - पुत्र रम्भ के वंश का कथन - रम्भस्य रभसः पुत्रो गम्भीरश्चाक्रियस्ततः ॥), वामन १७.४३(रम्भ व करम्भ पर मालवट यक्ष की कृपा, महिष पुत्र की उत्पत्ति), वायु १.२१.३० (पञ्चम कल्प का नाम - भवश्चतुर्थो विज्ञेयः पंचमो रम्भ एव च।), वा.रामायण ६.२६.३१(सारण द्वारा रावण को रम्भ वानर का परिचय देना), लक्ष्मीनारायण १.१६३ (रम्भ द्वारा तप से महिष पुत्र की प्राप्ति, रम्भ से रक्तबीज के प्रादुर्भाव की कथा), कथासरित् ८.१.५६(सूर्यप्रभ द्वारा राजा रम्भ की कन्या तारावली के अपहरण का उल्लेख ) rambha रम्भा अग्नि ५०.१४(गौरी का रूप ; रम्भा की प्रतिमा के लक्षण), १८४.१३ (बुधाष्टमी व्रत कथा के अन्तर्गत धीर ब्राह्मण की भार्या, कौशिक व विजया - माता), गरुड १.१२०(रम्भा तृतीया व्रत की विधि, मास अनुसार गौरी के नाम), देवीभागवत १२.६.१३५(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म २.२४.३४(इन्द्र द्वारा वृत्र वध हेतु उपाय चिन्तन, रम्भा को वृत्र के मोहन का आदेश), २.२५(रम्भा द्वारा वृत्र का मोहन, मधुपान कराना, इन्द्र द्वारा वृत्र का वध), २.३५(सुनीथा के पूछने पर रम्भा द्वारा तपोरत अत्रि - पुत्र अङ्ग के वृत्तान्त का कथन), २.३६(रम्भा की सहायता से सुनीथा द्वारा अङ्ग का वशीकरण, गान्धर्व विधि से विवाह), २.११३(तपोरत अशोकसुन्दरी का नहुष के प्रति आकर्षण, रम्भा द्वारा आकर्षण के कारण का कथन, रम्भा के साथ अशोकसुन्दरी का नहुष के समीप गमन), ५.१२.७८+(अहिच्छत्रा नगरी के राजा सुमद के तप भङ्ग हेतु इन्द्र की आज्ञा से काम, वसन्त तथा रम्भा प्रभृति अप्सराओं का तपोवन में गमन, सुमद से वार्तालाप, कामाक्षा देवी द्वारा सुमद की रक्षा आदि), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.८(रम्भा अप्सरा को देखकर उपबर्हण गन्धर्व का वीर्यपात, ब्रह्मा से शाप की प्राप्ति), ३.२०.१२(इन्द्र की रम्भा में आसक्ति और रतिक्रीडा, दुर्वासा द्वारा इन्द्र को पुष्पदान, इन्द्र द्वारा पुष्प का अनादर), ४.१४.३५ (रम्भा का नलकूबर के साथ रमण, देवल द्वारा जनमेजय की महिषी होने का शाप, शक्र द्वारा रम्भा का धर्षण व मोक्ष), ४.३०.६९(रम्भा द्वारा देवल मुनि से रति की याचना, अस्वीकृति पर देवल को शाप), ४.६२.४१(रम्भा के शाप से दक्ष के छागमस्तक होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२३.२२(रम्भा की सूर्य के रथ के साथ स्थिति -- तिलोत्तमा तथा रंभा ब्रह्मापेतश्च राक्षसः ।.....तपस्तपस्ययोः सूर्ये वसंति मुनिसत्तमाः ।।), २.३.६.२९(मय - भार्या, दुन्दुभि आदि की माता - मयस्य जाता रंभायां पुत्राः षट्च महाबलाः ॥ मायावी दुन्दुभिश्चैव पुत्रश्च महिषस्तथा । कालिकश्चाजकर्णश्चकन्या मन्दोदरी तथा ॥), भविष्य ३.४.१२.४६(रम्भा अप्सरा द्वारा मच्छन्द के उपभोग से नाथशर्मा की उत्पत्ति), भविष्य ३.४.१५.२६(नलकूबर - पत्नी सुप्रभा द्वारा रावण को शाप), ४.७(शकट व्रत से मूलजालिक ब्राह्मण को रम्भा की प्राप्ति), ४.१८(रम्भा तृतीया व्रत में पञ्चाग्नि साधन, पार्वती द्वारा व्रत का चीर्णन), ४.२४(रम्भा तृतीया व्रत में पार्वती की मास अनुसार विभिन्न नामों से पूजा), ४.९२(रम्भा व्रत में कदली वृक्ष की पूजा), मत्स्य १३.२९(देवी के १०८ नामों में से एक, मलय पर्वत पर स्थिति), वामन ३८.३(रम्भा प्रभृति अप्सराओं को देखकर मङ्कणक ऋषि का वीर्य स्खलन, कलश में स्थापन, सप्त मरुद्गणों की उत्पत्ति), ४६.३३(रम्भा का चित्राङ्गद गन्धर्व में अनुराग, रम्भा अप्सरा द्वारा स्थापित रम्भेश्वर लिङ्ग के दर्शन से सुरूपता प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२४(विष्णु की विभूति वर्णन के अन्तर्गत विष्णु के अप्सराओं में रम्भा होने का उल्लेख - प्रह्रादः सर्वदैत्यानां रम्भा चाप्सरसां तथा ।।), १.१३०.१३(रम्भा द्वारा उर्वशी की व्यथा सुनना), स्कन्द ३.१.३९.३९(रम्भा का विश्वामित्र के शाप से शिला बनने व मुक्त होने की कथा), ४.२.७६.१४३(रम्भाफल चोरी से वानरीयोनि प्राप्ति का कथन), ५.१.४४.११(समुद्र मन्थन से उत्पत्ति), ५.२.३(ढुण्ढ नामक शिवगण द्वारा शक्र लोक में नृत्यरत रम्भा पर मोहित होकर शुक्र से शाप प्राप्ति), ५.२.१७.४(रम्भा के लय - ताल विहीन नृत्य को देखकर इन्द्र द्वारा मनुष्य लोक में जाने का शाप, नारद आदेश से रम्भा द्वारा अप्सरेश्वर लिङ्ग की आराधना व शाप से मुक्ति), ५.३.१९८.६६(अमल पर्वत पर देवी का रम्भा नाम से वास), ६.१४३(रम्भा द्वारा जाबालि के साथ रति व फलवती कन्या की प्राप्ति), ७.४.१७.३५(द्वारका की उत्तर दिशा में पूजनीय जनों में से एक - नारदोनाम गन्धर्वो रंभा चैव वराप्सराः । एते पूज्याः प्रयत्नेन प्लक्षोनाम महाद्रुमः ॥ ), हरिवंश २.९३.२८(मनोवती द्वारा रम्भा रूप का धारण), वा.रामायण १.६३.२६+ (रम्भा द्वारा उत्तर दिशा में तपोरत विश्वामित्र के तप में विघ्न, शाप से शिला बनना), ३.४.१९(रम्भा नामक अप्सरा में आसक्ति के कारण तुम्बुरु गन्धर्व को कुबेर से विराध राक्षस योनि रूप शाप की प्राप्ति), ७.२६.१४ (नलकूबर - भार्या, रावण द्वारा बलात्कार की चेष्टा पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), लक्ष्मीनारायण १.४८८.८२(रंभा के शाप से देवल का अष्टावक्र होना), १.५०३(जाबालि व रम्भा से फलवती कन्या का जन्म), कथासरित् ३.३.१९(इन्द्र के उत्सव में रम्भा का नृत्य, पुरूरवा का हास्य, तुम्बुरु द्वारा पुरूरवा को शाप), ६.२.५५(राजा सुषेण के उद्यान में रम्भा अप्सरा का आगमन, परस्पर आसक्ति, सुषेण व रम्भा से कन्या का जन्म, रम्भा की शाप समाप्ति और स्वर्गलोक गमन, राजा द्वारा कन्या सुलोचना के पालन का वृत्तान्त ), १२.३४.३७४( सुन्दरसेन की प्रिया मन्दारवती की नलकूबर-प्रिया रम्भा से तुलना), द्र. रथ सूर्य rambhaa महाभारत आदि ६५.५०(प्राधा के गर्भ से कश्यप द्वारा उत्पन्न अप्सरा), वन २८०.६०(नलकूबर पत्नी, रावण द्वारा तिरस्कार पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), अनुशासन ३.११(विश्वामित्र के शाप से शिला बनने का उल्लेख), १९.४४(कुबेर की सभा में अष्टावक्र के स्वागत में नृत्य करने वाली अप्सराओं में एक)
रम्यक गर्ग ७.३०(रम्यक वर्ष में कलङ्क राक्षस पर प्रद्युम्न - सेनानी प्रघोष द्वारा विजय), देवीभागवत ८.९(रम्यक वर्ष में मनु द्वारा मत्स्य रूपी हरि की आराधना), भागवत ५.२.१९(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, रम्या - पति), ५.१८.२५(रम्यक वर्ष में मत्स्य देव की आराधना), वराह ८४.२(रम्यक वर्ष में उत्पन्न मानवों की स्थिति तथा दीर्घायुष्यता का उल्लेख), स्कन्द ५.१.७०(रम्य सर का माहात्म्य ) ramyaka
रम्या भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, रम्यक - पत्नी )
रय द्र. भूतरय रव लक्ष्मीनारायण २.१०६.४९रवासन, २.१६७.४०नाररव, ३.२२४, द्र. दीर्घरव, पुरूरवा
रवि कूर्म १.४३.२०(आषाढ मास में रवि नामक सूर्य की रश्मियों की संख्या), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२०(रवि से वक्ष:स्थल की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.२१.४ (रवि शब्द की निरुक्ति), भविष्य १.६१.२५(खडे होते समय रवि सूर्य के स्मरण का निर्देश), १.१३८.३७(रवि की धर्म ध्वज का उल्लेख), २.१.१७.८(अवसानान्त में अग्नि के रवि नाम का उल्लेख), ३.४.२०.१९(विधि/ब्रह्मा के रवि नामक अपरा प्रकृति का स्वामी होने का कथन), मत्स्य १२४.४(रवि की निरुक्ति), स्कन्द ३.२.१३(सूर्य - संज्ञा आख्यान), ३.२.१३.५८(रवि कुण्ड का माहात्म्य), ५.२.४४.३४(वक्र रवि द्वारा ब्रह्मा को शिरछेदन प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.७०(रवि तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१२५(रवि तीर्थ का माहात्म्य, सूर्य द्वारा तप करके आकाश में स्थित होना), ५.३.१९५.११(सूर्य ग्रहण के अवसर पर स्वर्ण दान से सूर्य के अनन्त फल दाता होने का उल्लेख?), ७.१.१३(सूर्य माहात्म्य, अर्कस्थल की उत्पत्ति ), लक्ष्मीनारायण २.१८४.४८, ३.४१.८८ ravi
रविक स्कन्द ३.३.७, ५.३.७०, ५.३.१२५
रशना लक्ष्मीनारायण २.२२५.९२(ईशानियों को शृङ्खला व रशना दान का उल्लेख ),द्र. रज्जु rashanaa
रश्मि कूर्म
१.४३.२(सूर्य की ७ रश्मियों के नाम व कार्य
-
सुषुम्नो हरिकेशश्च विश्वकर्मा तथैव च ।विश्वश्रवाः पुनश्चान्यः संयद्वसुरतः परः ।। ),
ब्रह्माण्ड
१.२.२४.३७(सूर्य की रश्मियां
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पंचरश्मिसहस्राणि वरुणस्यार्ककर्मणि ।।
षड्भिः सहस्रैः पूषा तु देवोंऽशुसप्तभिस्तथा
।।),
१.२.२४.६५(ग्रहों को पुष्ट करने वाली सूर्य रश्मियों के नाम
-
रवे रश्मिसहस्रं यत्प्राङ्मया समुदाहृतम् ।। तेषां श्रेष्ठाः पुनः सप्त रश्मयो
ग्रहयोनयः ।।),
३.४.१.१३५(सूर्य की रश्मियां
-
सप्तरश्मिरथो भूत्वा उदत्तिष्ठद्विभावसुः ॥..
रश्मिकेतु वा.रामायण ६.४३.११(रावण - सेनानी, राम से युद्ध )
रस अग्नि ८५.१५, २८१(आयुर्वेदानुसार कटु आदि रसों के लक्षण), ३३९(शृङ्गारादि रसों का निरूपण), ३३९.२(परमात्मा के सहज आनन्द की अभिव्यक्ति का नाम), ३४२(हास्य, करुण आदि रसों का निरूपण), नारद २.१७.१४(सन्ध्यावली को देखने से ही षड्रसों की उत्पत्ति का कथन), २.२२.८१(सब रसों के त्यागी को रजत व सुवर्ण पात्र देने का निर्देश), पद्म १.३४.८२(वरुण के रसों का अधिपति होने का उल्लेख), ५.७४.१०५(रस नाम प्रत्यय वाली राधा-सखियों के नाम), ६.६.२९(वल असुर के रुधिर से रसोद्भव की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.४२(रसिक शिरोमणि कृष्ण से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९(मधु - माधव मासों की रस संज्ञा), भविष्य ३.४.१९.५५ (रस तन्मात्रा के अधिपति? यक्षराज होने का उल्लेख), मत्स्य ६३(रस कल्याणिनी व्रत विधि, तृतीया व्रत, ललिता न्यास, भक्ष्याभक्ष्य), ८५.६(रसों में इक्षु रस की श्रेष्ठता का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(रस हरण से श्वान योनि प्राप्ति का उल्लेख), ३.१८.१(हास्य आदि ९ रसों के साथ मध्यम आदि ७ स्वरों का सामञ्जस्य), ३.३०(अभिनय में शृङ्गार आदि रसों की अभिव्यक्ति), ३.४३(चित्रसूत्र में शृङ्गारादि रसों के प्रदर्शन का कथन), शिव १.१८.४८(ब्राह्मणों के लिए रस लिङ्ग के सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख), १.१८.५२(निवृत्तों व विधवाओं के लिए रस लिङ्ग के श्रेष्ठ होने का उल्लेख), ७.१.२८.३(, महाभारत शान्ति २३३.७(प्रलय काल में ज्योति द्वारा आप: के गुण रस को आत्मसात् करने का उल्लेख), अनुशासन ८५.२८(अग्नि द्वारा मण्डूकों को रस न जानने का शाप), लक्ष्मीनारायण १.३०.१८(रसों द्वारा धातु प्राप्ति का उल्लेख), २.१५.५९, ३.२६.४६, ३.३२.१०१, ३.३६.३४, ३.१३८(रस कल्याण ललिता व्रत), ३.३२२.७३(क्षार त्याग व्रत के उद्यापन में रस दान का निर्देश ), ४.१०१.१०६रसिका, वास्तुसूत्रोपनिषद ५.६(८ प्रकार के रसों के व्यक्तीकरण हेतु शिल्प में रेखा विधान), द्र. अग्निरस, सुरसा rasa
रसना अग्नि ८५.१४(प्रतिष्ठा कला/स्वप्न में रसना इन्द्रिय व रस विषय होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.२५.३६(ब्रह्माण्ड रसना से मोह/मङ्गल? की उत्पत्ति का उल्लेख ) rasanaa
रसा मत्स्य १६९.१३(रसा नामक पृथिवी की नाभिकमल में स्थिति ) rasaa
रसातल वामन ९०.३५(रसातल में विष्णु के सहस्रशिर कालाग्नि, कपिल, कृत्तिवास नाम), स्कन्द ५.१.३०.२७(दैत्यों और पन्नगों का वास स्थान), लक्ष्मीनारायण २.५.३५, २.२२.२१(रसातल में चक्र तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख ) rasaatala/ rasatala
रसायन लक्ष्मीनारायण ४.८०.१५, द्र. ब्रह्मरसायन
रह लक्ष्मीनारायण ४.४२.८८
रहस्य भविष्य १.६५(रहस्या नामक सप्तमी व्रत माहात्म्य का वर्णन), दुर्गासप्तशती(गीताप्रेस, गोरखपुर) परिशिष्ट १(प्राधानिक, २(वैकृतिक), ३(मूर्ति), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३१, rahasya
रहूगण नारद १.४८(जड भरत द्वारा सौवीरराज की शिबिका का वहन, सौवीरराज को उपदेश), १.४९( जड भरत द्वारा सौवीरराज को ऋभु व राजा निदाघ की कथा के माध्यम से समझाना), भागवत ५.१०(रहूगण द्वारा जड भरत की शिबिका वाहक के रूप में नियुक्ति, भरत से उपदेश की प्राप्ति ) rahoogana/rahuugana/ rahugana
रहोदर वामन ३९(रहोदर की जङ्घा में राक्षस के शिर का चिपकना, उशना तीर्थ में मुक्ति )
राका गरुड १.५.१२(स्मृति व आङ्गिरस - कन्या), देवीभागवत ८.१२.२४(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.११.१८(स्मृति व अङ्गिरस - कन्या), भागवत ६.१८.३(धाता की चार पत्नियों में से एक), मत्स्य १४१.४१(चन्द्रमा का रञ्जन करने से पूर्णिमा का राका नाम?), स्कन्द ५.३.१५६.१५, वा.रामायण ७.५.४१(सुमाली राक्षस व केतुमती की ४ कन्याओं में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२३०.१७ raakaa/ raka |