पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

( Ra, La)

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Yogalakshmi - Raja  (Yogini, Yogi, Yoni/womb, Rakta/blood, Raktabeeja etc. )

Rajaka - Ratnadhaara (Rajaka, Rajata/silver, Raji, Rajju, Rati, Ratna/gem etc.)

Ratnapura - Rathabhrita(Ratnamaalaa, Ratha/chariot , rathantara etc.)

Rathaswana - Raakaa (Rathantara, Ramaa, Rambha, Rambhaa, Ravi, Rashmi, Rasa/taste, Raakaa etc.) 

Raakshasa - Raadhaa  (Raakshasa/demon, Raaga, Raajasuuya, Raajaa/king, Raatri/night, Raadhaa/Radha etc.)

Raapaana - Raavana (  Raama/Rama, Raameshwara/Rameshwar, Raavana/ Ravana etc. )

Raavaasana - Runda (Raashi/Rashi/constellation, Raasa, Raahu/Rahu, Rukmaangada, Rukmini, Ruchi etc.)

Rudra - Renukaa  (Rudra, Rudraaksha/Rudraksha, Ruru, Roopa/Rupa/form, Renukaa etc.)

Renukaa - Rochanaa (Revata, Revati, Revanta, Revaa, Raibhya, Raivata, Roga/disease etc. )

Rochamaana - Lakshmanaa ( Roma, Rohini, Rohita,  Lakshana/traits, Lakshmana etc. )

Lakshmi - Lava  ( Lakshmi, Lankaa/Lanka, Lambodara, Lalitaa/Lalita, Lava etc. )

Lavanga - Lumbhaka ( Lavana, Laangala, Likhita, Linga, Leelaa etc. )

Luuta - Louha (Lekha, Lekhaka/writer, Loka, Lokapaala, Lokaaloka, Lobha, Lomasha, Loha/iron, Lohit etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Yogini, Yogi, Yoni/womb, Rakta/blood, Raktabeeja etc. are given here.

Comments on Rakshaabandhan/tying of knots

योगलक्ष्मी भविष्य ४.१०३(गौतम व अहल्या - पुत्री, शाण्डिल्य - पत्नी योगलक्ष्मी के जन्मान्तर का वृत्तान्त, योगलक्ष्मी द्वारा कृत्तिका व्रत का चारण ) yogalakshmee/ yogalakshmi

 

योगसिंह भविष्य ३.३.२९.४३(बौद्धसिंह द्वारा योगसिंह का वध )

 

योगाचार्य शिव ७.२.९.६(वराह कल्प के सप्तम मन्वन्तर के २८ योगाचार्यों तथा उनके ४-४ शिष्यों का नामोल्लेख ) yogaachaarya/ yogacharya

 

योगानन्द कथासरित् १.४.१०३(राजा नन्द की मृत्यु, इन्द्रदत्त का राजा के शरीर में प्रवेश, नन्द का योगानन्द नाम धारण ), द्र. योगनन्द

 

योगिनी अग्नि ५२.१(६४ योगिनियों के नाम), ३४८.३(एकाक्षर कोष के अन्तर्गत ऐ अक्षर योगिनी का वाचक), नारद १.६६.११५(अत्रीश की शक्ति योगिनी का उल्लेख), पद्म ६.१८.१२६(शिव की आज्ञा से योगिनियों द्वारा जलन्धर दैत्य के रक्तादि का पान), स्कन्द १.२.१३.१७५(शतरुद्रिय प्रसंग में योगिनियों द्वारा अलक्तक लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), २.८.७.८१(योगिनी कुण्ड का माहात्म्य), ३.२.९.१०५(धर्मारण्य निवासी ब्राह्मणों का जृम्भक यक्ष द्वारा पीडन, ब्राह्मण रक्षार्थ देवों द्वारा धर्मारण्य में योगिनियों की स्थापना), ३.२.२२.१(काजेश विनिर्मित योगिनी देवियों के निवास व शक्ति का निरूपण), ३.३.१०, ४.१.४५(दिवोदास के राज्य में विघ्नार्थ प्रस्थित ६४ योगिनियों के नाम), ४.२.७९.१०६(योगिनी पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.७०.४५(६४ योगिनियों का उल्लेख), ७.१.११९(६४ योगिनियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.८३(काशी से दिवोदास के निष्कासन हेतु ६४ योगिनियों द्वारा विविध रूप धारण), १.४२४.१९(नग्न के नाश हेतु योगिनी का उल्लेख), १.४४०, १.५३८, २.१४८, २.१५३.६७, कथासरित्  ८.५.१२२(शरभानना योगिनी के पराक्रम की कथा), १४.४.२५(नागस्वामी ब्राह्मण का योगिनी से रक्षा हेतु गौ की शरण में गमन, गौ द्वारा ब्राह्मण की योगिनी से रक्षा), १८.४.२१२(योगिनियों द्वारा कन्दर्प नामक ब्राह्मण की रक्षा, पश्चात् पतन, कन्दर्प द्वारा स्वमित्र से योगिनियों की माया का वर्णन ) yoginee/ yogini

 

योगी स्कन्द ३.३.१०(ऋषभ योगी द्वारा परित्यक्ता रानी को ज्ञानोपदेश, पुत्र को जीवनदान का वृत्तान्त),५.३.१३९.११(सोमतीर्थ वर्णन के अन्तर्गत योगी के विशिष्ट भोज्यकाल का उल्लेख), ७.१.८३(योगीश्वरी देवी की पूजा का माहात्म्य, योगीश्वरी द्वारा महिषासुर का वध), महाभारत उद्योग ४६.१(योगिन: तं प्रपश्यन्ति पद वाले श्लोक ) yogee/ yogi

 

योगेश्वर भागवत ८.१३.३२(योगेश्वर अवतार : देवहोत्र व बृहती - पुत्र), वराह २७(योगीश्वरी मातृका : काम का रूप), स्कन्द ७.१.८३(योगेश्वरी महादेवी तीर्थ का वर्णन), ७.१.९७(योगेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), कथासरित्  २.४.४९(ब्रह्मराक्षस का नाम, यौगन्धरायण से मित्रता), ३.४.२३१(योगेश्वरी : योगेश्वरी द्वारा स्वसखी भद्रा को विद्याधरों के कोप से बचने हेतु उदयपर्वत पर जाने का आदेश), ६.६.२४(वत्सराज के कल्याणार्थ यौगन्धरायण द्वारा योगेश्वर नामक ब्रह्मराक्षस की सहायता लेना), ६.७.९६(कलिङ्गसेना का वृत्तान्त जानने हेतु योगेश्वर नामक ब्रह्मराक्षस की नियुक्ति, यौगन्धरायण द्वारा पशुपक्षियों द्वारा स्वरक्षा के सम्बन्ध में कथा का वर्णन ) yogeshwara

 

योगोत्पत्ति ब्रह्माण्ड २.३.१०.८६(देवलोक के काव्य नामक पितरों की मानसी कन्या )

 

योजन मत्स्य १११.८(प्रयाग मण्डल के पञ्च योजन विस्तीर्ण होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.९७.५९(योजनगन्धा : शन्तनु - भार्या सत्यवती का पराशर - प्रदत्त दूसरा नाम), ५.३.१४३(योजनेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ), कथासरित् १२.२५.५० yojana

 

योद्धा महाभारत शान्ति १०१

 

योधन स्कन्द ५.३.१४२.७६(योधनीपुर : केशव के कहने से ब्राह्मणों का योधनपुर में निवास, माहात्म्य), ५.३.१४२.८८, ५.३.१४६.३०(योधनीपुर तीर्थ में किए गए कार्यों के अक्षय होने का उल्लेख), ५.३.१८९.१४(पञ्च वराह रूपों में से द्वितीय वराह के वास का स्थान), ५.३.२३१.२५(तीर्थमाला के अन्तर्गत दो योधनपुर तीर्थों का उल्लेख ) yodhana

 

योनि अग्नि ८४.३२(६ मृगयोनियों व ८ देवयोनियों के नाम), ३७१.३०(पाप अनुसार जीव योनियों की प्राप्ति), कूर्म  २.३३(विभिन्न योनियों के जीवों की हत्या का प्रायश्चित्त), गरुड १.१०४(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), १.२१७(विभिन्न दुष्कर्मों के कारण प्राप्त योनियां), २.३४(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), देवीभागवत  ९.३५.४३(पापों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), पद्म ६.१७.८८(कृत्या द्वारा स्वयोनि में शुक्र का स्थापन), ब्रह्म १.१०८(पाप - पुण्य कर्मानुसार योनियों की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.४४(कृतघ्नता दोष के फलस्वरूप प्राप्त योनियों का वर्णन), २.५८(पाप कर्मों से प्राप्त योनियां), ४.८५(पाप कर्मों से प्राप्त योनियां), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१२४(भास्कर के दिवसों के प्रविभागों की योनि होने का कथन), मत्स्य १२२.७१(कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक, अपर नाम धूतपापा), मार्कण्डेय १४, १५(दुष्कृत्यों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), वराह १३४+ (अविधि भगवत्कर्म के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), वायु ५३.४४(ग्रहों की योनिभूत सूर्य की रश्मियों के नाम), विष्णु ३.१८.६८(पाषण्ड सम्भाषण दोष से राजा को श्वा, शृगाल प्रभृति विभिन्न कुयोनियों की प्राप्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०(पापकर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), शिव ५.४.१०(१४ योनियों में से ८ देवयोनि, एक मनुष्ययोनि और ५ तिर्यक् योनि होने का उल्लेख), ७.१.३१.७०(देवयोन्यष्टक, मनुष्य मध्यम व अधम पक्षि आदि योनिपञ्चक का कथन), ७.२.१८.११(१४ योनियों का उल्लेख), स्कन्द ३.१.४९.७९(किम्पुरुषों द्वारा नाना योनियों में जन्म से मुक्ति की कामना), ३.३.१५(यवनराज दुर्जय द्वारा प्राप्त २५ योनियां), ५.२.७७.१०(महादेव का शिवा को गुणसमूहों की योनि तथा तपों की योनि बताना), ५.३.११४(अयोनिसंभव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१२६(अयोनिप्रभव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१५९.२२(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां, अयोनिग को वृक योनि प्राप्ति), ५.३.२०९.१०८(पापिष्ठ को प्राप्त विभिन्न योनियों का कथन), महाभारत आश्वमेधिक २०.२४(पृथिवी, वायु, आकाश आदि ७ योनियों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५३७.५(अग्नि के समुद्र की योनि होने का उल्लेख ), द्र. अयोनि yoni

 

योषा कथासरित् ८.४.१०६(भिन्न - भिन्न देशों की स्त्रियों द्वारा अपनी - अपनी विशेषताओं से पति के मनोरञ्जन का उल्लेख ) yoshaa

 

यौगन्धरायण स्कन्द ३.१.५(युगन्धर - पुत्र, माल्यवान् का रूप), कथासरित् २.१.४३(शतानीक के प्रधानमन्त्री युगन्धर का पुत्र), २.४.३८(यौगन्धरायण द्वारा मन्त्रियों को राजाहीन राज्य की रक्षा हेतु तैयार रहने का आदेश), ६.५.६२(यौगन्धरायण की कूटनीति), ६.८.११४(यौगन्धरायण के पुत्र मरुभूति की युवराज नरवाहनदत्त के मुख्यमन्त्री पद पर  नियुक्ति ) yaugandharaayana/ yaugandharayana

 

यौवन स्कन्द ५.३.७८.२९(धन द्वारा मनुष्यों के और ऋतुओं द्वारा वृक्षों के यौवन के पुनरागमन का कथन), ५.३.१५९.२०(अप्राप्त यौवन का अनुगमन करने से सर्प योनि प्राप्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२०(युवावस्था के दोषों का वर्णन), १.२०.२३(युवावस्था की रोदन रूपी वृक्षों के वन से तथा चन्द्रमा से उपमा ) yauvana

 

यौवनाश्व गर्ग १०.२१(भद्रावती पुरी का राजा, अनिरुद्ध की सेना से युद्ध व पराजय), देवीभागवत ७.९(प्रसेनजित् - पुत्र, पुत्रेष्टि में अभिमन्त्रित जल पान से मान्धाता पुत्र की उत्पत्ति की कथा ),द्र. युवनाश्व yauvanaashva/ yauvanashva

 

रक्त अग्नि ११५.५७(प्रेतों में सित के जनक, रक्त के पितामह तथा कृष्ण के प्रपितामह होने का उल्लेख), गणेश  २.६३.२८(रक्तकेश : देवान्तक - सेनानी, प्राकाम्य सिद्धि से युद्ध), गरुड २.३०.५१/२.४०.५१(मृतक के शोणित में मधु देने का उल्लेख), नारद १.५०.४४(सङ्गीत में रक्त का शब्दार्थ, वेणु वीणा और स्वरों का एकीभाव रक्त नाम से अभिहित), पद्म १.१४(विष्णु के रक्त से नर की उत्पत्ति का आख्यान), ५.७०.६१(उत्तर द्वार पर रक्त विष्णु की स्थिति का कथन), ब्रह्म १.७०.५२(शोणित के पित्तवर्ग में होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१७(रक्तदन्तिका देवी से आग्नेयी दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.१.५.२२(यज्ञवराह के सोमशोणित होने का उल्लेख), २.३.१४.२४(वल असुर के रक्त से रस-गन्ध से रहित लशुन, लवण आदि की उत्पत्ति), भविष्य ४.६१.३(रक्तासुर : महिषासुर - पुत्र, देवी द्वारा वध का वृत्तान्त), मत्स्य १९.९(प्रेत का भोजन रुधिर होने का उल्लेख), वायु २२.२१, ३२.२१(३०वें कल्प का नाम व वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.९१.११(वृक्षायुर्वेदविद् द्वारा शुक्ल को रक्त में बदलने का उल्लेख), स्कन्द ५.१.३७.३०(रुधिर : शिव द्वारा मातृकाओं को अन्धकासुर का रुधिर पीने का आदेश), ५.१.४४.२१(विष्णु द्वारा चक्र से राहु का शिर - छेदन करने पर राहु काया से रक्त का स्राव, उसी स्थल पर राहु तीर्थ का निर्माण), ६.२५२.२३(चातुर्मास में रक्ताञ्जन वृक्ष में वह्नि की स्थिति का उल्लेख), ७.३.३१(रक्त अनुबन्ध तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्रसेन की स्त्री विनाश के पाप से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण २.५.८८, २.३२.४४, २.५०.३२, २.११०.६७, ४.१०१.११६(,rakta

 

रक्तबीज गणेश २.१०३.८(कमलासुर के रक्त के पतन से असंख्य असुरों की उत्पत्ति, सिद्धि व बुद्धि द्वारा रक्त पान), देवीभागवत ५.१, ५.२.४७(रम्भ दानव का अवतार), ५.२१.३४(शुम्भ - सेनानी रक्तबीज के शरीर से पतित रक्त की एक बूंद से तत्सदृश पुरुषों की उत्पत्ति), ५.२६.२८(शुम्भ - निशुम्भ सेनानी), ५.२७+ (शुम्भ - सेनानी, देवी से युद्ध, चामुण्डा द्वारा रक्तबीज के रक्त का पान, रक्तबीज की मृत्यु), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१५(रक्तबीज - विनाशिनी देवी से हस्त की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.३.१(शिव का अंश ), ३.२.३६, ३.३.१५.१०(देवी द्वारा मूलशर्मा को रक्तबीज होने का वर), ३.३.२४.७५(महाबल के सामन्त का पुत्र, महाबल द्वारा बलखानि के विनाश हेतु नियुक्ति), ३.३.२७.५३(रक्तबीज व चामुण्ड आदि  द्वारा तालन व आह्लादादि सेना का पराभव), मार्कण्डेय ८८(देवी द्वारा रक्तबीज के वध का आख्यान), वामन १७(रक्तबीज की उत्पत्ति), ५५(रक्तबीज का शुम्भ - निशुम्भ से परिचय), ५६(रक्त बीज का वध), शिव ५.४७.५४(शुम्भ व निशुम्भ - सेनानी, अम्बिका के पास गमन और अम्बिका से स्वामी के संदेश का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१६३.२२(महिष रूप धारी रम्भ तथा महिषी से रक्तबीज की उत्पत्ति का वृत्तान्त), १.१६७, २.५५.९२, २.५७.२८, २.५७.१००(रक्तबीज का भविष्य में धुन्धु दैत्य के रूप में जन्म ), २.५८.९, raktabeeja/ raktabija

 

रक्तलोचन पद्म ६.१६.२९(जालन्धर के नेत्रों का क्रोध से लाल होना), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४२(रक्ताक्ष : शङ्खचूड - सेनानी, शनि से युद्ध ) raktalochana

 

रक्तशृङ्ग स्कन्द ६.९(हिमालय - पुत्र, इन्द्र के आदेश से हाटक क्षेत्र के बिल को पूरित करने के लिए जाना),

 

रक्ताक्ष देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, शनि से युद्ध), स्कन्द ७.४.१७.१५(भगवत्परिचारक वर्ग में आग्नेय दिशा के द्वारपालों में से एक), कथासरित् १०.६.१०२(उलूकराज - मन्त्री ) raktaaksha/ raktaksha

 

रक्ष अग्नि ३४८.२(रक्षक आदि अर्थों में ऊ एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख), मत्स्य ५१.३८(रक्षोहा अग्नि : कामनापूरक यज्ञों की अग्नि, यतिकृत उपनाम), शिव ३.५.१०(१४वें द्वापर के व्यास का नाम ) raksha

 

रक्षा गरुड १.२१.४, ब्रह्माण्ड २.३.७.२९९(ऋक्ष - भगिनी, जाम्बवान - माता), लक्ष्मीनारायण २.२६७.४(म्लेच्छों द्वारा सुराष्ट्र के राजा व राणिका - पति रक्षाङ्गारका की हत्या ), ३.१९.३०रक्षालय, ३.५५.२रक्षाश्व rakshaa

 

रक्षाबन्धन नारद १.१२४.२६(रक्षाबन्धन पूर्णिमा व्रत विधि), भविष्य ४.१३७(रक्षाबन्धन पर्व विधि  ), लक्ष्मीनारायण १.२८०.६४? rakshaabandhana/ Rakshabandhan

Comments on Rakshaabandhan/tying of knots

 

रक्षित कथासरित् ११.१.७६(एक ज्ञानी भिक्षु), १६.२.११६(रक्षितिका : सुप्रहार नामक मछुआरे की माता, राजा मलयसिंह की कन्या पर सुप्रहार की आसक्ति होने पर रक्षितिका द्वारा उपाय का अवलम्बन, सुप्रहार तथा मलयसिंह - कन्या के विवाह का वृत्तान्त ) rakshita

 

रघु स्कन्द २.८.४(रघु द्वारा कुबेर से प्राप्त धन से कौत्स मुनि को संतुष्ट करना ), द्र. सुरघु raghu

 

रङ्कण भविष्य ३.४.१६(लक्ष्मीदत्त - पुत्र, यङ्कणा - पति, पावक/वैश्वानर का अंश), कथासरित् १२.२.८९(रङ्कुमाली : विद्याधर, तारावली - पति, विनयवती नामक कन्या की उत्पत्ति का वृत्तान्त ) rankana

 

रङ्ग गर्ग ७.९.१०(शिशुपाल - मन्त्री, प्रद्युम्न - सेनानी, भानु द्वारा वध), ७.२६.२५(रङ्गवल्लीपुर का सुबाहु राजा, तुलसी की रङ्गवल्ली संज्ञा, महिमा), पद्म २.४२, २.४६(रङ्ग विद्याधर द्वारा शूकर रूप धारण कर पुलस्त्य के तप में विघ्न, शाप से शूकर योनि प्राप्ति), ५.७२.१३(रङ्गवेणी : रङ्ग - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, पूर्व जन्म में हरिधाम मुनि) स्कन्द २.१.९.१८(भगवद्भक्त शूद्र, तुष्ट श्रीहरि द्वारा नृप होने का वरदान), लक्ष्मीनारायण ३.२१४.२रङ्कमयी ), ३.२२४.१ दीर्घरङ्ग, द्र. श्रीरङ्ग ranga

 

रङ्गोजि गर्ग ४.१४(रङ्गपत्तन नगर के गोप रङ्गोजि द्वारा कंस की सहायता से कौरवों को पराजित करना, जालन्धर की स्त्रियों का रङ्गोजि गोप की कन्याएं बनकर कृष्ण को प्राप्त करना ) rangoji

 

रचना भागवत ६.६.४४(दैत्यों की छोटी बहिन, त्वष्टा - पत्नी, संनिवेश एवं विश्वरूप - माता )

 

रज अग्नि १०७.१७(विरज - पुत्र, सत्यजित् - पिता, स्वायम्भुव वंश), गरुड १.२१.४रजा, गर्ग ५.१८.९(रजोगुण वृत्ति रूपा गोपियों के कृष्ण के प्रति उद्गार), भविष्य ३.४.२५.३१(ब्रह्माण्ड के रजस से वायु रूप स्वारोचिष मनु की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत ७.१.८(रजोगुण से असुरों की वृद्धि का उल्लेख), वायु २८.३६(वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र, मार्कण्डेयी - पति, केतुमान् - पिता )दष्ञ्ष्, शिव ७.१.१७.३४, लक्ष्मीनारायण २.२५५.३५, द्र. विरजा raja