पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX ( Ra, La)
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Puraanic contexts of words like Rajaka, Rajata/silver, Raji, Rajju, Rati, Ratna/gem etc. are given here. रजक गर्ग ५.५.३५(कृष्ण द्वारा रजक के उद्धार की कथा), ५.१०.४(पूर्व काल में राम राज्य में रजक द्वारा सीता विषयक अपवाद कथन के कारण कंस के काल में कृष्ण द्वारा रजक का उद्धार), पद्म ५.५५(राम द्वारा सीता को पुन: स्वीकार करने पर रजक द्वारा राम की निन्दा), ५.५७.६४(पूर्व जन्म में वाल्मीकि आश्रम में पक्षी, सीता द्वारा बन्धन पर प्राण त्याग, रजक बनना, राम की निन्दा), ब्रह्म १.८४.७१(कृष्ण - बलराम का मथुरा में भ्रमण करते हुए रजक से वस्त्र मांगना, रजक के न देने पर कृष्ण द्वारा तल प्रहार से रजक का वध), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७२(कृष्ण द्वारा रजक का उद्धार), भविष्य ३.२.६(कलिभोजन नामक रजक द्वारा कामाङ्गी की प्राप्ति की कथा), भागवत १०.४१(मथुरा में रजक द्वारा कृष्ण को वस्त्र न देने पर कृष्ण द्वारा रजक का वध), विष्णु ५.१९.१४(मथुरा में कृष्ण द्वारा रजक का वध), स्कन्द ६.१२३.२(शुद्धक नामक रजक द्वारा मलिन वस्त्रों का जलाशय में प्रक्षालन, शुक्लत्व प्राप्ति, जलाशय की शुक्ल तीर्थ रूप में प्रसिद्धि), ७.३.२३(शमिलाक्ष नामक रजक द्वारा मलिन वस्त्रों का जलाशय में प्रक्षालन, शुक्लत्व प्राप्ति, जलाशय की शुक्ल तीर्थ रूप से प्रसिद्धि), हरिवंश २.२७(कृष्ण द्वारा मथुरा में रजक का वध), महाभारत शान्ति ९१.२, कथासरित् १०.७.१३३(रजक के भार को वहन करने वाले गर्दभ की मूर्खता की कथा), १२.१३.१(रजक कन्या की कथा ) rajaka
रजत पद्म ६.६.२७(, मत्स्य १७.२१(रजत धातु के पितरों को प्रिय और देवों को अप्रिय होने का उल्लेख), ५८.१८(तडाग आदि निर्माण में रजत - निर्मित मत्स्य व दुन्दुभि दान का निर्देश), ९१(रजताचल दान विधि), स्कन्द १.१.८.२४(नैर्ऋत द्वारा राजत लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०१.६४(अग्नि के अश्रुओं से रजत की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.३३.८६, ३.३४.१, कथासरित् १०.९.७४(रजतदंष्ट्र : वज्रदंष्ट्र नामक विद्याधरराज का पुत्र, शाप से स्वर्णचूड पक्षी बनना), १२.१.६८(वामदत्त विद्याधर द्वारा स्वसिद्धि के प्रभाव से मलय पर्वत के रजतकूट नामक शिखर पर नगर का निर्माण ) rajata
रजतनाभ ब्रह्माण्ड २.३.७.११०(यक्ष व क्रतुस्थला - पुत्र, गुह्यक गण के पितामह, मणिभद्र - पिता), वायु ६९.१५१(यक्ष व क्रतुस्थली से रजतनाभ की उत्पत्ति, गुह्यक गण के आदि पूर्वज, वंश का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७(रजतनाभ के वंश का वर्णन), हरिवंश १.६.३३(मणिवर - पिता, पृथिवी का दोग्धा, विशेषता ) rajatanaabha/ rajatanabha
रजनी देवीभागवत ८.१२.२४(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), नारद १.५०.३९(निषाद की मूर्च्छना का नाम ) rajanee/ rajani
रजस वायु ७०.१६(रजस प्रजापति के पुत्रों का दिशाओं के अधिपति बनना),
रजस्वला ब्रह्मवैवर्त्त ४.५९.११२(शची – प्रोक्त रजस्वला स्त्री के दोष), लक्ष्मीनारायण १.३७४.८४(ऋतुकाल के चार दिनों में नारी की अशुद्धि का कथन), १.५८०.७३(रजस्वला अवस्था में नारी द्वारा भगवत्पूजा का प्रश्न व उत्तर ), २.२०९.६६ rajasvalaa
रजि पद्म १.१२.७७(आयुष के ५ पुत्रों में से एक, तप से प्रसन्न विष्णु से देव, असुर व मनुष्यों में विजयी होने के वरदान की प्राप्ति, बृहस्पति द्वारा रजि - पुत्रों का मोहन), ब्रह्म १.९(आयु - पुत्र, देवों की ओर से युद्ध, इन्द्र द्वारा रजि - पुत्रों का नाश), ब्रह्माण्ड २.३.६७.८८(देवों के पक्ष में दानवों से युद्ध, इन्द्र पद प्राप्ति में इन्द्र द्वारा रजि की वंचना), भविष्य ४.१९१(भुवन प्रतिष्ठा नामक व्रताचरण से राजा रजि को सात जन्मों तक राजपद प्राप्ति), भागवत ९.१७.१(पुरूरवा - पौत्र, आयु - पुत्र, संक्षिप्त वर्णन), मत्स्य २४.३५(आयु के ५ पुत्रों में से एक, राजेय नाम से विख्यात सौ पुत्रों के पिता), वायु ९२.८३(इन्द्र बनने की शर्त पर रजि द्वारा देवों की ओर से युद्ध की कथा), विष्णु ४.९(रजि वंश का वर्णन, देवासुर युद्ध में दैत्यों और देवों द्वारा रजि से सहायता का आह्वान, रजि द्वारा देवों की सहायता), हरिवंश १.२८(आयु व प्रभा - पुत्र, असुरों से युद्धार्थ इन्द्र द्वारा रजि - पुत्र बनना, रजि - पुत्रों का नाश ) raji
रजोवती भविष्य ३.२.३०
रज्जु पद्म २.५४.२५(सती सुकला के संदर्भ में सत्य रूपी रज्जु से चेतना को बांधने का उल्लेख), मत्स्य २(मनु की नौका के मत्स्य से बन्धन हेतु सर्प रूपी रज्जु के उपयोग का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१५५.११४(चाणक्य राजा का ध्यान में कृष्ण रज्जु का अवलम्बन करके प्रकाशयुक्त रज्जु का दर्शन करना), योगवासिष्ठ १.१८.२०(आन्त्रों की रज्जु से उपमा), कृष्णोपनिषद २१(अदिति के रज्जु व कश्यप के उलूखल होने का उल्लेख ) rajju
रञ्जन स्कन्द ५.३.६.४४(नर्मदा के रञ्जना नाम का कारण), लक्ष्मीनारायण ४.४६.७७, ४.१०१.११६
रण भविष्य ३.२.१३.१(रणधीर : चन्द्रह्रदय नगर का एक राजा), वामन ५७.७५(नर्मदा द्वारा कुमार को रणोत्कट नामक गण प्रदान का उल्लेख), हरिवंश ३.५८.१(रणाजि : एक देव, एकचक्र नामक दैत्य के साथ युद्ध), लक्ष्मीनारायण २.४२+रणङ्गम, ४.३२रणस्तम्ब, ४.८४.८८(रणवज्र : नन्दिभिल्ल राजा का सेनापति, युद्ध में नागविक्रम द्वारा वध का वर्णन ) rana
रणजित् भविष्य ३.३.२६.९०(परिमल व मलना - पुत्र, सात्यकि का अंश, नृहर, मर्दन व सरदन का वध, तारक द्वारा रणजित् का वध ), लक्ष्मीनारायण २.२०७.८० ranajit
रण्ड लक्ष्मीनारायण १.४२४.१९(रण्ड के नाश हेतु दुर्गा का उल्लेख )
रति अग्नि ३४८.२(रति अर्थ में ईं एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख), गणेश १.७७.६(जमदग्नि - पत्नी रेणुका की लोक में रति नाम से प्रसिद्धि), १.८८.३(रति द्वारा शिव से काम को जीवित करने की याचना, काम के मन:स्मरण मात्र से जीवित होने का वरदान आदि), गरुड १.२१.४(वामदेव की १३ कलाओं में से एक), ३.७.११(रति द्वारा हरि स्तुति), ३.२८.४२(रति का लक्षणा रूप में अवतरण), देवीभागवत ७.३८(आषाढ क्षेत्र में देवी की रति नाम से स्थिति का उल्लेख), १२.६.१३३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९०(अनिरुद्ध की शक्ति रति का उल्लेख), १.१२२.२८(रति - काम त्रयोदशी व्रत की विधि), पद्म १.४३(काम के दग्ध होने पर रति द्वारा शिव की स्तुति), २.७७(काम से वियोग और संयोग होने पर उत्पन्न रति के अश्रुओं से विभिन्न जन्मों का कथन), ७.२०(रति विदग्धा वेश्या दान से मुक्ति), ब्रह्म १.३६(काम के दग्ध होने पर शिव - पार्वती द्वारा कृष्ण के पुत्र रूप में पुनर्जीवन का वर), ब्रह्मवैवर्त्त १.४(रति की कृष्ण के वामाङ्ग से उत्पत्ति, रति के दर्शन पर ब्रह्मा के रेतस का पतन), ४.४५(शिव विवाह में रति द्वारा हास्य), ४.४६(रति का काम के साथ विहार, पार्वती व शंकर की रति, रति विच्छेद का दुष्परिणाम), ४.१०९(कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह में रति द्वारा हास्य), ४.११५.७९(मायावती के रति की छाया होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३०.४३(काम दग्धता से शोकयुक्त रति को देखकर परमेश्वरी द्वारा काम का पुन: सञ्जीवन, रति की प्रसन्नता, काम द्वारा स्तुत परमेश्वरी द्वारा काम को पुन: स्वकार्य के सम्पादन का निर्देश), भागवत ५.१५(विभु - पत्नी, पृथुषेण - माता), मत्स्य १३.३७(रतिप्रिया : देवी के १०८ नामों में से एक, गङ्गाद्वार तीर्थ में रति नाम से स्थिति), १५४.२६०(काम के दग्ध होने पर रति द्वारा शिव की स्तुति), विष्णु १.८.३३(राग - पत्नी), विष्णुधर्मोत्तर ३.५२(मूर्ति निर्माण में रति के हाथ में सौभाग्य कमल की निर्मिति का उल्लेख), शिव २.२.३, २.२.३.५३(दक्ष के शरीर से पतित क्षमादम्भ से उत्पत्ति), २.२.४(दक्ष - कन्या, काम से विवाह), २.३.१८.१५(रति सहित काम द्वारा शिव के ध्यान भङ्ग के प्रयास का वर्णन), स्कन्द १.१.२१(रति द्वारा काम के सञ्जीवन के लिए तप, नारद से संवाद), १.१.२१.११२(शम्बर द्वारा रति का हरण व मायावती नामकरण), २.८.८.१(रतिकुण्ड तथा कुसुमायुध कुण्ड का माहात्म्य), ५.२.१३.३६(शिव द्वारा काम के दग्ध होने पर रति का शोक, रति की प्रार्थना पर काम को अनङ्गता प्राप्ति), ५.३.१९८.७५, लक्ष्मीनारायण १.१८५, १.१९४, १.१९८.३९(दक्ष के वीर्य पतन से रति की उत्पत्ति का कथन), १.२५४, १.३१४, १.५३३.१२४(शरीर की वासना के दिव्य रूप में रति बनने का उल्लेख), १.५३९, ३.२५.४९, ४.१०१.८७, कथासरित् ६.८.४०(रति द्वारा अङ्ग युक्त काम को प्राप्त करने के लिए शिवाराधन, शिव द्वारा वत्सराज - पुत्र नरवाहनदत्त के रूप में काम रूप पति को प्राप्त करने का रति को आश्वासन ), द्र. गण्डान्तरति, तपोरति, सुरति rati
रत्न अग्नि २४६(राजा द्वारा धारण योग्य रत्नों के नाम ; रत्न परीक्षा/ रत्नों के लक्षण), गरुड १.६८(बल असुर की काया के अवयवों के रूप, वज्र के गुण-दोषों का वर्णन), पद्म १.२१.१७२(रत्न शैल निर्माण व दान), ५.१७.३८(रत्नग्रीव : काञ्ची के राजा रत्नग्रीव द्वारा नील पर्वत की यात्रा, चतुर्भुजत्व प्राप्ति), ६.६.२४(इन्द्र के वज्र से विशीर्ण हुए बलि के शरीर - अवयवों का भिन्न - भिन्न रत्नों के बीजत्व को प्राप्त होना), ६.२३२(समुद्र मन्थन से दिव्य वस्तुओं की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.२९.७४(चक्रवर्ती हेतु ७ प्राणहीन व ७ प्राणयुक्त रत्नों का कथन), ३.४.९.६५(समुद्र मन्थन से उत्पन्न वस्तुओं में कौस्तुभ रत्न का नाम), भविष्य ४.१५७(रत्नधेनु दान की विधि), ४.२०२(रत्नाचल दान की विधि, विविध पर्वतों का विविध रत्नों से निर्माण), भागवत ८.८(समुद्र मन्थन से उत्पन्न वस्तुओं में कौस्तुभ रत्न का विष्णु द्वारा ग्रहण), ११.१६.३०(श्रीकृष्ण के रत्नों में पद्मराग होने का उल्लेख), मत्स्य ९०(रत्नाचल दान की विधि ; पर्वतों के लिए रत्न विशेष), २८८(रत्नधेनु दान की विधि), वायु ५७.६९(चक्रवर्ती हेतु ७ प्राणहीन व ७ प्राणयुक्त रत्नों का वर्णन), विष्णु १.९.९२(समुद्र मन्थन का कथन), ४.१२.३टीका(१४ रत्नों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.४०.१९(समुद्रमन्थन से विष, रत्नों आदि की उत्पत्ति), २.१५(रत्नों के नाम व महत्त्व), शिव २.५.३६.१०(रत्नसार : शङ्खचूड - सेनानी, जयन्त से युद्ध), ३.२२.१६(समुद्र मन्थन से उत्पन्न द्रव्यों के नाम), स्कन्द १.१.८.२२(इन्द्र द्वारा रत्नमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), १.१.३१.९९(रत्नों, धातुओं से लिङ्गों का निर्माण), २.८.८.३६(महारत्न तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.२.३६.३९(रत्नगङ्गा : आम व यामा - कन्या, कुम्भीपाल - भार्या, इन्द्रसूरि नामक जैनभिक्षु से प्रेरित होकर जैन धर्म ग्रहण व वैष्णव धर्म का त्याग), ४.१.३३.१६४(रत्नेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य, पुरुषार्थ महारत्न निर्वाण का कथन), ४.२.६७.११९(रत्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शङ्खचूड/रत्नचूड नाग कुमार द्वारा वसुभूति गन्धर्व की कन्या रत्नावली की सुबाहु दानव से रक्षा व विवाह), ५.१.४४.९(समुद्र मन्थन से प्राप्त १४ रत्नों के नाम), ६.२१०.१४(समुद्र मन्थन ३ कुरूप रत्नों की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा रत्नों का ग्रहण), ७.१.४३(रत्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, समुद्र द्वारा पूजित आदित्येश्वर लिङ्ग का नाम), ७.१.१५५(विष्णु द्वारा स्थापित रत्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.१५९(रत्न कुण्ड का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३३(रत्नकूट प्रासाद के लक्षण), ३.१९.८६रत्ननारायणी, ३.३३.८६रत्नक, ३.१३२रत्नधेनु, ३.१६१+(बल असुर की देह से रत्नों की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ३.१६२+(रत्नों/वज्रों के लक्षणों का वर्णन), कथासरित् ५.३.३(कनकपुरी के अन्वेषण हेतु शक्तिदेव का सत्यव्रत के साथ रत्नकूट नामक द्वीप में होने वाले यात्रोत्सव में गमन), ७.२.९(रत्नकूट नामक द्वीप निवासी रत्नाधिपति राजा की कथा), १२.५.९३(रत्नचन्द्रमति : एक भिक्षु, राजा विनीतमति से शास्त्रार्थ, राजा की हार, बौद्ध धर्म ग्रहण), १५.१.२२(नरवाहनदत्त द्वारा सरोवर रत्न, चन्दन रत्न, तलवार रत्न, चन्द्रिका रत्न, कामिनी रत्न तथा विध्वंसिनी रत्न नामक विद्या रत्नों की सिद्धि ) ratna
रत्नदत्त कथासरित् ६.१.१५(वितस्तादत्त नामक वणिक् का पुत्र, राजा द्वारा मोक्षोपाय का कथन), १०.१.६(रत्नदत्त नामक वैश्य द्वारा राजा से भारवाही के वृत्तान्त का निवेदन), १२.२१.५(एक वणिक्, नन्दयन्ती - पति, रत्नवती - पिता, रत्नवती द्वारा एक चोर से विवाह की कथा), १८.४.१६५(एक ब्राह्मण, रूपवती – पिता, कन्या के विवाह की कथा ) ratnadatta
रत्नधार लिङ्ग १.५०.६(रत्नधार पर्वत पर सप्तर्षियों का वास), वराह ८१.४(रत्नधार पर्वत के ऊपर सप्तर्षियों की स्थिति का उल्लेख ) |