पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX ( Ra, La)
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Puraanic contexts of words like Ratnamaalaa, Ratha/chariot, rathantara etc. are given here. रत्नपुर कथासरित् ५.१.८२(रत्नपुर नगर निवासी शिव और माधव नामक धूर्त्तों की कथा), १८.४.२०४(रत्नपुर नगर निवासी कन्दर्प नामक ब्राह्मण की कथा )
रत्नप्रभ लक्ष्मीनारायण ३.२२५, कथासरित् ८.३.३१(चन्द्रप्रभ - पुत्र, मय तथा सूर्यप्रभ आदि के द्वारा पृथ्वी के राज्य पर प्रतिष्ठा),
रत्नप्रभा कथासरित् ७.१.१३७(हेमप्रभ - कन्या, वज्रप्रभ - स्वसा, नरवाहनदत्त से विवाह), ७.२.१(वही), ९.५.१५१(रत्नप्रभा : नागराज वासुकि की कन्या एक नागिन, राजा कनकवर्ष की पितृस्वसा, कनकवर्ष को पुत्र प्राप्ति हेतु कार्ति की आराधना का आदेश), १०.९.२१६(रत्नप्रभा : हिरण्यपुर राज्य के राजा कनकाक्ष की भार्या, हिरण्याक्ष - माता ) ratnaprabhaa
रत्नभानु भविष्य ३.३.१.२६(नकुलांश लक्ष्मण का पिता), ३.३.५.६(चन्द्रकान्ता - पुत्र, जयचन्द्र - अनुज, वीरवती - पति, नकुलांश लक्षण का पिता), ३.३.६.५४(पृथ्वीराज - अग्रज, कृष्णकुमार से युद्ध में मृत्यु), ३.३.६.५६(पृथ्वीराज - सेनानी, उदयसिंह द्वारा वध), ३.४.२२.३८(आचार्य, पूर्व जन्म में वर्तक ) ratnabhaanu/ ratnabhanu
रत्नमाला गर्ग १.१३.३०(बलि - पुत्री, वामन पर आसक्ति से पूतना बनना), ब्रह्मवैवर्त्त १.२४.१९(लक्ष्मी की कला, मनुवंशीय राजा सृंजय की कन्या, पूर्व जन्म में नारद - पत्नी मालती, पुन: नारद को पति रूप में प्राप्त करने हेतु तप), ४.६.१४५(सूर्य - पत्नी संज्ञा की अपनी कला से भूतल पर रत्नमाला नाम से उत्पत्ति), ४.१०.४२(बलि की कन्या, पूतना रूप में अवतरण), ४.१७.३६(पितरों की मानसी कन्या, पति रूप में जनक का वरण, पश्चात् सीता की उत्पत्ति), ४.३०.६१(राजा सुयज्ञ की कन्या, देवल - भार्या), ४.६९.५८(राधा की सखी रत्नमाला द्वारा वियोग में राधा की अवस्था का वर्णन), ४.९४.५१(रत्नमाला द्वारा राधा को सांत्वना ) ratnamaalaa/ ratnamala
रत्नरेखा कथासरित् १०.१०.१३७(रत्नाकर नगर निवासी बुद्धिप्रभ राजा की भार्या, हेमप्रभा - माता )
रत्नवर्मा कथासरित् १०.१.५४(चित्रकूट नगर निवासी एक वणिक्, ईश्वरवर्मा – पिता, पुत्र को कुट्टनी से शिक्षा दिलवाने की कथा )
रत्नवर्ष कथासरित् ५.३.२१५(यक्ष, विद्युत्प्रभा - पिता, विद्युत्प्रभा की शाप से मुक्ति की कथा )
रत्नसार देवीभागवत ९.२२.७(शङ्खचूड - सेनानी, जयन्त से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४३(शङ्खचूड - सेनानी, जयन्त से युद्ध),
रत्नाकर कथासरित् १०.३.५९(रत्नाकर नगर निवासी ज्योतिष्प्रभ व हर्षवती - पुत्र सोमप्रभ की कथा), १०.१०.१३६(रत्नाकर नगर निवासी बुद्धिप्रभ व रत्नरेखा - पुत्री हेमप्रभा की कथा), १८.४.११(अश्व, उच्चैःश्रवा - पुत्र), १८.४.२३५(रत्नाकर नगर निवासी जयदत्त ब्राह्मण की कन्या सुमना द्वारा पूर्वघटित स्ववृत्तान्त का वर्णन ) ratnaakara/ ratnakara
रत्नाक्ष स्कन्द ६.२१२.१९(अयोध्या के अधिपति रत्नाक्ष द्वारा कुष्ठ प्राप्ति, विश्वामित्र तीर्थ में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति, रत्नादित्य की स्थापना )
रत्नादित्य स्कन्द ६.२१२(रत्नाक्ष द्वारा स्थापित रत्नादित्य का माहात्म्य, पशुरक्षक को दिव्य देह की प्राप्ति )
रत्नावती स्कन्द ६.१९५.११+ (आनर्ताधिपति व मृगावती - पुत्री, ब्राह्मणी - सखी, परावसु को मातृभाव से स्तन पान कराना, तप, ब्राह्मणी - शूद्री तीर्थ का माहात्म्य), कथासरित् १२.२१.६(रत्नदत्त वणिक् की कन्या, एक चोर का पति रूप में वरण करने की कथा ) ratnaavatee/ ratnavati
रत्नावली नारद २.२७.७७+ (काशिराज सुद्युम्न की पुत्री, गोभिल राक्षस द्वारा हरण, राक्षस की मृत्यु पर पिता से पुनर्मिलन, कौण्डिन्य विप्र से विवाह), स्कन्द ४.२.६७(वसुभूति गन्धर्व की कन्या, शशिलेखा आदि ४ सखियां, सुबाहु दानव द्वारा हरण, शङ्खचूड/रत्नचूड नागकुमार द्वारा रत्नावली की दानव से रक्षा व विवाह), ४.२.७६.८६(रत्नदीप नाग की पुत्री, पूर्व जन्म में कपोती, त्रिलोचन लिङ्ग की पूजा, परिमलालय विद्याधर की पत्नी बनना), लक्ष्मीनारायण १.४६८.१५, १.४७२, कथासरित् १२.१०.२२(वणिक् - कन्या, धनदत्त से विवाह, व्यसनी धनदत्त द्वारा रत्नावली की हत्या की कथा ) ratnaavalee/ ratnavali
रत्निका लक्ष्मीनारायण ४.४६.४३
रथ अग्नि १२०.२१(सूर्य
के रथ का वर्णन),
१२०.३३(ग्रहों
के रथों का वर्णन),
कूर्म १.४१.२७+
(सूर्य रथ व्यूह का कीर्तन),
गणेश १.४७.४०(शिव द्वारा त्रिपुर वध हेतु रथ का वर्णन),
गर्ग १.११.५७(योगमाया
की अवतार देवी अनंशा का कंस के हाथ से छूटकर आकाशस्थ शतपत्र नामक रथ पर आरूढ होना
और कंस को सम्बोधित करना),
७.३३.३(शकुनि
असुर के वैजयन्त/जैत्र रथ का वर्णन),
देवीभागवत ७.३४.३५(शरीर की रथ से
उपमा- आत्मानं रथिनं विद्धि इति),
७.३६.८(रथ के
अरों की भांति देह में नाडियों के नाभि से जुडे होने का उल्लेख),
८.१५.१०(उत्तरमार्ग,
मध्यममार्ग तथा दक्षिण मार्गों से सूर्य के रथ की गति का
वर्णन),
१२.११.११(रथरेखा : पद्मरागमय साल की लोकनायिकाओं में से एक),
नारद १.११६.६१(माघ
शुक्ल सप्तमी को रथ सप्तमी),
पद्म
१.१७.२२८(कार्तिक पूर्णिमा को
ब्रह्मा हेतु रथ यात्रा),
१.४०.१५०(विष्णु के दिव्य रथ का
वर्णन),
१.४०.१६५(विष्णु
से युद्ध हेतु मय आदि असुरों के रथों का वर्णन),
३.१५(त्रिपुर विनाशार्थ शिव का रथ),
ब्रह्म १.१०.७(इन्द्र
द्वारा ययाति को रथ प्रदान करना,
अन्य राजाओं द्वारा ययाति से रथ की प्राप्ति,
अन्त में वासुदेव द्वारा रथ की प्राप्ति),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.५.५३(कृष्ण द्वारा योगबल से ५ रथों की उत्पत्ति,
एक रथ
नारायण को तथा एक रथ राधा को प्रदान,
तीन अपने पास रखने का उल्लेख),
३.४.५२(नितम्ब सौन्दर्य हेतु एक सहस्र रथचक्र के दान का
उल्लेख),
४.६.९९(प्रकृति
देवी के रथ का वर्णन),
ब्रह्माण्ड
१.२.२२.६१(सूर्य के चक्र के प्रकार व रथ का वर्णन),
१.२.२३.५१(सोम
के रथ का
वर्णन),
३.४.१९(ललिता
देवी का रथ),
३.४.२०.९१(ललिता
देवी के गेय चक्र रथ व किरिचक्र रथ का वर्णन,
पर्वों
की शक्तियां आदि),
३.४.२७.३०(अन्धकार
रथ),
३.४.२८.१५(किरिचक्र
रथ,
गेयचक्र रथ),
भविष्य
१.१८(ब्रह्मा की रथ यात्रा),
१.५०.१६(रथ
सप्तमी व्रत में कांचन रथ दान का निर्देश),
१.५२+ (सूर्य
की रथ यात्रा, रथांग
काल अवयव रूप),
१.५६(रथ पर्यटन विधि का वर्णन),
१.५७.१०(सूर्य
रथ व उसके वाहकों के लिए बलि का विधान),
२.१.१७.१४(रथाग्नि के जातवेदस नाम का उल्लेख),
३.४.१२.३२(मायी
असुर के त्रिपुर का ध्वंस करने के लिए शिव का रथ),
४.१३४(रथ यात्रा),
४.१८०(गज
रथ व अश्व रथ दान की विधि),
४.१८७(हिरण्य अश्व रथ दान की विधि),
४.१८९(हेम हस्ति रथ दान की विधि),
भागवत ४.२६.१(राजा
पुरञ्जन के रथ का वर्णन,
भार्याविहीन
गृह
की
चक्र
से रहित रथ से तुलना, द्र. ऋ. ३.५३.५),
४.२६.१५(वही),
४.२९.१८(
पुरञ्जन के
शरीर
रूपी रथ के प्रतीकार्थ),
५.१.३१(राजा
प्रियव्रत के रथ के पहियों से निर्मित लीकों से सात समुद्रों का निर्माण, तुलनीय – ऋ.
१.१८०.१०),
५.१६.२(वही),
५.२१(सूर्य
के रथ की गति का वर्णन),
७.१०.६६(त्रिपुर
दहनार्थ शिव का रथ),
७.१५.४१(शरीर
रूपी रथ),
८.१५.५(विश्वजित्
यज्ञ
में
राजा बलि को दिव्य रथ की प्राप्ति),
१०.४६.४७(गोपियों
द्वारा नन्दबाबा के द्वार पर उद्धव जी के
शातकौम्भमय
रथ का दर्शन),
१२.११.१६(मन व तन्मात्राओं से निर्मित विष्णु का
आकूति
रथ),
१२.११.३२(सूर्य के रथ का वर्णन),
मत्स्य १२५.३७(सूर्य
के रथ का विस्तृत वर्णन),
१२७(ग्रहों
के रथों का वर्णन),
१३३(त्रिपुर
के विध्वंस हेतु शिव के रथ का वर्णन),
१४८.३८(तारकासुर का रथ),
१४८.४९(ग्रसन
असुर का रथ),
१४८.५०(महिषासुर
का रथ),
१४८.५१(मेघ
असुर का रथ),
१७३.२(मय के
रथ का वर्णन),
१७३.९(तारकासुर
के रथ का वर्णन),
१७३.१८(त्वष्टा
का रथ),
१७४.४(इन्द्र
का रथ),
१८८(बाण के
त्रिपुर दहनार्थ शिव का रथ),
२८१(हिरण्याश्व
रथ दान की विधि),
२८२(हेम
हस्ति रथ दान की विधि),
लिङ्ग १.५५(सूर्य
के रथव्यूह
का
वर्णन),
१.५७(ग्रहों
के रथों का वर्णन),
१.७२(त्रिपुर
दहनार्थ शिव के रथ का वर्णन),
वराह
२१.३१(दक्ष के सृष्टियज्ञनाश हेतु रुद्र के वेदविद्यांग रथ का
स्वरूप),
वायु ५१.५४(सूर्य
के रथ का वर्णन,
रथ के अङ्गों का काल से तादात्म्य),
५२.५०(ग्रहों
के रथों व अश्वों का वर्णन),
९२.१८,
९३.१८(ययाति
को रुद्र से दिव्य रथ की प्राप्ति,
रथ का
वंशजों को स्थांतरण),
९९.१०१(अनपान के पुत्र दिविरथ का वंश),
विष्णु २.८(सूर्य
का रथ),
२.१०(सूर्य
रथ व्यूह का वर्णन),
२.१२(ग्रहों
के रथ),
५.३७.५१(जैत्र रथ),
विष्णुधर्मोत्तर ३.१६८(सूर्य का रथ),
३.३०१.३७(रथ प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि),
शिव २.५.८(त्रिपुर
वध हेतु शिव के लिए रथ का
सृजन, श्रद्धा रथ की गति आदि),
२.५.९(
शिव के
तेज को सहन करने में रथ के वेदरूपी अश्वों की अक्षमता,
शिव को
पशुपतित्व की प्राप्ति होने पर ही रथ की सक्षमता का वर्णन),
५.५१.६४(आषाढ शुक्ल तृतीया में करणीय रथोत्सव के अन्तर्गत रथ की पृथ्वी से,
रथाङ्ग की सूर्य चन्द्रमा से,
वेदों की
अश्वों से तथा सारथि की ब्रह्मा से प्रतीकात्मता),
स्कन्द
१.१.१७.२८३(बलि द्वारा यज्ञ से रथ
की प्राप्ति ),
१.२.५.१२९(माघ रथसप्तमी -
सूर्य के रथ के पूर्व में पंहुचने की तिथि, द्र. ऋ. ८.८०.४),
१.२.३३.२५(त्रिपुरहंता शिव के
क्षोणी रूपी रथ का रूपक),
१.२.३८(सूर्य का रथ),
१.२.४३.५६(अर्घ्य मन्त्र से
सूर्य के रथ का
आवाहन),
२.२.२५.९(वासुदेव
परिवार के रथ,
रथ के अवयवों के नष्ट होने के दोष),
२.२.३३(भगवद्
मूर्ति स्थापना के लिए रथ यात्रा),
२.२.३५(भगवद् रथ की रक्षा की विधि),
४.२.५८.१५८(त्रिपुर
वधार्थ शिव का रथ),
४.२.८८.५९(दक्ष
यज्ञ में सती गमन के लिए रथ का वर्णन),
५.१.२६.२४(पिङ्गलेश्वर शिव को रथ
दान का उल्लेख),
५.१.२७.२५(कृष्ण
द्वारा वरुण से रथ की प्राप्ति,
रथ का यम के पास जाना),
५.१.३६.५६(नरदीप की रथ यात्रा),
५.३.२८(बाणासुर के त्रिपुर हननार्थ
शिव का रथ),
६.३६.१६(यान
हेतु रथन्तर साम जप का निर्देश ),
७.१.१०७.५८(कार्तिक पूर्णिमा को
ब्रह्मा की रथ यात्रा),
हरिवंश
१.३०(इन्द्र द्वारा ययाति को प्रदत्त रथ का विवरण),
१.४३.८(तार दैत्य का रथ),
१.४३.२(मयासुर का रथ),
२.६३.९२(नरकासुर का रथ),
२.८१.३०(यम
की भार्या द्वारा यामरथ व्रत का अनुष्ठान),
२.१०५(शम्बर का रथ),
२.११३(कृष्ण का रथ,
अर्जुन सारथि
;
समुद्र व
पर्वतों द्वारा मार्ग देना),
२.११९.१३८(बाण का रथ),
३.४९.३१(बलि का रथ),
३.४९.३२(बल
का रथ),
३.४९.३७(नमुचि
का रथ),
३.४९.४२(मय
का रथ),
३.५०.१(पुलोमा
का रथ),
३.५०.८(हयग्रीव
का रथ),
३.५०.२३(शम्बर
का रथ),
३.५१.१(अनुह्राद
का रथ),
३.५१.८(विरोचन
का रथ),
३.५१.२६(वृत्र
का रथ),
३.५१.४३(राहु
का रथ),
३.५१.५८(विप्रचित्ति
का त्रैलोक्य विजय नामक रथ),
३.५१.६४(केशी का रथ),
३.५१.७३(बलि
का रथ),
३.५२(विभिन्न
देवगण के रथ),
३.५२.१०(इन्द्र
का रथ),
महाभारत वन ९९.१७(इल्वल
द्वारा अगस्त्य को प्रदान किए गए हिरण्यरथ का वर्णन),
१९८.१३(वसुमना राजा के पुष्परथ सम्बन्धी कथा),
उद्योग ३४.५९(शरीर रथ का कथन),
९४.१२६,
१७९.३(परशुराम द्वारा मेदिनी रूपी रथ पर आरूढ होकर भीष्म से
युद्ध),
द्रोण १२८,
१४७.४६(सात्यकि का कृष्ण के रथ पर आरूढ होकर कर्ण से युद्ध),
१४७.८१(कर्ण के रथ का स्वरूप),
१५६.५७,
१७६.१४(अलायुध राक्षस के रथ का स्वरूप),
२०२.७३(त्रिपुर दहन का प्रसंग),
कर्ण
३४.१७(शिव द्वारा त्रिपुरनाश के संदर्भ में रथ का वर्णन),
३८.५,
४६.३८,
८९.२८,
९०.१०२(अर्जुन
से युद्ध में कर्ण के रथ के सव्य चक्र का भूमि द्वारा ग्रसन),
शल्य १६.२४(शल्य से युद्ध में शैनेय व धृष्टद्युम्न के युधिष्ठिर के रथ
के चक्ररक्षक बनने का उल्लेख),
६२.७(अर्जुन
के रथ के भस्म होने का वृत्तान्त),
शान्ति २३६.११(जीवयुक्त दिव्य रथ का वर्णन),
अनुशासन ५३.३२(च्यवन ऋषि द्वारा रथ में कुशिक नृप को हय बनाने का
वृत्तान्त),
आश्वमेधिक ५१(बुद्धि से संयमित ब्रह्मरथ का कथन),
स्त्री
७.१३(शरीर रथ में इन्द्रिय हयों का अनुसरण न करने का निर्देश),
योगवासिष्ठ १.१६.११(मोह रूपी
रथ),
२.१२.२२(शरीर
रूपी रथ का
कथन),
३.४१.१७(रथ प्रत्यय वाले विदूरथ राजा के पूर्वजों के नाम),
३.४६.४(युद्धोन्मुख राजा विदूरथ के रथ का वर्णन),
६.१.३१.३९(चिति का रथ
जीव,
जीव का
अहंकार, अहंकार का
बुद्धि ;
मन,
प्राण आदि के रथों का कथन),
वा.रामायण २.९६.१८(कोविदार वृक्ष के
ध्वज से युक्त भरत का रथ),
५.४७.४(रावण
- पुत्र अक्षकुमार का रथ),
६.५१.२८(रावण
- सेनानी धूम्राक्ष का रथ),
६.१०६(रावण
के रथ का वर्णन),
लक्ष्मीनारायण १.७२,
१.१२२,
१.१७०,
१.२२३,
१.२८१,
१.५८७,
१.५८८,
१.५८९,
२.१५९,
२.२४५.४९,
२.२५३.३(देह
रूपी
शकट पर वस्तुओं का बोझ, शकट के
अंगों का निरूपण),
३.१२८.७१,
३.१४२.४६,
कथासरित्
८.४.८३(मनुष्यों और विद्याधरों के युद्ध में विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा मनुष्य
सेना को रथ - रथी से विहीन करना),
८.५.७९(प्रभास के साथ विद्याधरों के युद्ध में ४ रथहीन
सैनिकों के रथ पर बैठने का उल्लेख ),
द्र.
अजरथ,
अप्रतिरथ,
जयद्रथ,
चित्ररथ,
चैत्ररथ,
दशरथ,
दृढरथ,
धर्मरथ,
बृहद्रथ,
भद्ररथ,
भागीरथी,
भीमरथ,
मनोरथ,
महारथ,
महीरथ,
रुक्मरथ,
विरथ,
विदूरथ,
विश्वरथ,
वेदरथ,
सत्यरथ,
सुरथ,
हेमरथ,
वैरथ
ratha
रथकार लक्ष्मीनारायण ३.२१४.१, कथासरित् १०.६.१०४(तक्षा/रथकार तथा उसकी पत्नी की कथा )
रथध्वज देवीभागवत ९.१५.४७(वृषध्वज - पुत्र, धर्मध्वज व कुशध्वज - पिता), ब्रह्मवैवर्त्त २.१३,
रथन्तर अग्नि ५८.२६(रथन्तर से
विष्णु को भूषा अर्पित करने का निर्देश), पद्म
१.२०.४(रथन्तर कल्प में उत्पन्न
पुष्पवाहन नामक नृपति का आख्यान),
वायु १.२१.७०/२१.८०(२८वें बृहत्कल्प
में सूर्य मण्डल के रथन्तर स्वरूप का कथन),
स्कन्द ६.३६.१६(यान हेतु रथन्तर साम
जप का निर्देश),
७.१.१०५.४५(चतुर्थ कल्प का नाम ),
महाभारत अनुशासन १४.२८२(ब्रह्मा
द्वारा रथन्तर साम से भव की स्तुति का उल्लेख),
लक्ष्मीनारायण १.२६९.२७(आषाढ चतुर्थी के रथन्तर कल्प का आद्य दिन होने का उल्लेख )
rathantara रथभृत् द्र. रथ सूर्य |