पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

( Ra, La)

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Yogalakshmi - Raja  (Yogini, Yogi, Yoni/womb, Rakta/blood, Raktabeeja etc. )

Rajaka - Ratnadhaara (Rajaka, Rajata/silver, Raji, Rajju, Rati, Ratna/gem etc.)

Ratnapura - Rathabhrita(Ratnamaalaa, Ratha/chariot , rathantara etc.)

Rathaswana - Raakaa (Rathantara, Ramaa, Rambha, Rambhaa, Ravi, Rashmi, Rasa/taste, Raakaa etc.) 

Raakshasa - Raadhaa  (Raakshasa/demon, Raaga, Raajasuuya, Raajaa/king, Raatri/night, Raadhaa/Radha etc.)

Raapaana - Raavana (  Raama/Rama, Raameshwara/Rameshwar, Raavana/ Ravana etc. )

Raavaasana - Runda (Raashi/Rashi/constellation, Raasa, Raahu/Rahu, Rukmaangada, Rukmini, Ruchi etc.)

Rudra - Renukaa  (Rudra, Rudraaksha/Rudraksha, Ruru, Roopa/Rupa/form, Renukaa etc.)

Renukaa - Rochanaa (Revata, Revati, Revanta, Revaa, Raibhya, Raivata, Roga/disease etc. )

Rochamaana - Lakshmanaa ( Roma, Rohini, Rohita,  Lakshana/traits, Lakshmana etc. )

Lakshmi - Lava  ( Lakshmi, Lankaa/Lanka, Lambodara, Lalitaa/Lalita, Lava etc. )

Lavanga - Lumbhaka ( Lavana, Laangala, Likhita, Linga, Leelaa etc. )

Luuta - Louha (Lekha, Lekhaka/writer, Loka, Lokapaala, Lokaaloka, Lobha, Lomasha, Loha/iron, Lohit etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Raashi/Rashi/constellation, Raasa, Raahu/Rahu, Rukmaangada, Rukmini, Ruchi etc. are given here.

रावासन लक्ष्मीनारायण २.९७.५३, २.२१६.१६

 

राशि अग्नि १२७.१३(मेषादि राशियों की प्रकृति का विचार), २९३.१२(राशि अनुसार अक्षर विभाजन से फल ज्ञान), गरुड १.६२(कन्या विवाह हेतु प्रशस्त - अप्रशस्त राशियां), नारद १.५५.१(राशियों के स्वरूप का ज्ञान), १.५५.३५१(राशि द्रेष्काण स्वरूप), भविष्य ३.४.१०.७७(तुला राशि में स्थित भानु की विशेषताएं), ३.४.११.९(कर्क राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.११.५१(वृष राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.११.६९(कुम्भ राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१२.१४(मिथुन राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१२.४३(मीन राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१२.५८(मेष राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१३.१७(मकर राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.२५.८०(विभिन्न मन्वन्तरों में राशियों के अनुसार अवतारों के नाम), वामन ५.४४(राशियों का कालपुरुष में न्यास, राशियों की मूर्तियों का स्वरूप), ६१(राशियों की देह में स्थिति), विष्णु २.८(ज्योति, नक्षत्र, राशियों की व्यवस्था का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.९४(राशियों में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति), ३.९६(प्रतिमा प्रतिष्ठार्थ राशियां), स्कन्द १.३.२.७.३०(१२ राशियों में १२ प्रकार के पुष्पों से अरुणेश की पूजा), ७.१.११(भारत रूपी कूर्म में राशियों का विन्यास), लक्ष्मीनारायण १.२३१, २.१९.४१, २.२९७.९५(राशीयान कान्ताओं के गृह में रमण करते व हंसते हुए कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ), ३.१५३.८६, raashi/ rashi

 

राशियान लक्ष्मीनारायण २.१२१, २.२९७.९५,

 

राष्ट्र मार्कण्डेय ७४.१(स्वराष्ट्र नामक राजा को तामस मनु नामक पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त), वामन ३९.३०(अवकीर्ण तीर्थ का माहात्म्य -- धृतराष्ट्र से क्रुद्ध बकदाल्भ्य नामक ऋषि द्वारा यज्ञ में राष्ट्र का हवन, राष्ट्र का क्षय, ऋषि के प्रसन्न होने पर राष्ट्र का पुन: उत्थान), ९०.३०(सुराष्ट्र में विष्णु की महाबाहु व नवराष्ट्र में   यशोधर नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.२(पुष्कर प्रोक्त राष्ट्र के कृत्य), महाभारत शल्य ४१.१७(अवाकीर्ण तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में बक दाल्भ्य-धृतराष्ट्र का आख्यान), शान्ति ८७(राष्ट्रगुप्ति व राष्ट्रसंग्रह के उपाय), योगवासिष्ठ ३.१७(लीलोपाख्याने सदेह राष्ट्रवर्णनम् ), द्र. धृतराष्ट्र, सौराष्ट्र, स्वराष्ट्र raashtra/ rashtra

References on Rashtra 

राष्ट्रवर्धन वा.रामायण १.७

 

रास गर्ग २.१९(वैशाख कृष्ण पञ्चमी को कृष्ण व गोपियों की रास क्रीडा), ५.२०(कदली वन में राधा - कृष्ण रास उत्सव), ६.१८(सिद्धाश्रम की अपेक्षा वृन्दावन में राधा - कृष्ण के रास की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), १०.४२(राधा व कृष्ण के रास का वर्णन), ब्रह्म १.८१(गोपियों व कृष्ण का रास), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.१८(रासमण्डल में कृष्ण के वाम पार्श्व से राधा की उत्पत्ति), १.१९.३४(रासेश कृष्ण से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ३.३१.३०(रासेश्वर कृष्ण से तालु की रक्षा की प्रार्थना), ४.१२.२०(रासेश्वर कृष्ण से रसना की रक्षा की प्रार्थना), ४.२८(रास क्रीडा का वर्णन), ४.७३, भागवत १०.२९+ (गोपी - कृष्ण रास), विष्णु ५.१३(कृष्ण व गोपियों की रास क्रीडा का वर्णन), हरिवंश २.२०(कृष्ण व गोपियों का रास), २.८९(पिण्डारक तीर्थ में कृष्ण व यादवों का रास), लक्ष्मीनारायण २.२३३, ४.१०१.६५, कथासरित् १२.७.३६(लासक की लास्यवती कन्या पर राजा की मुग्धता, विवाह ) raasa/ rasa

 

रासभ गणेश १.६२.१८(क्षत्रिय - पत्नी सुमुद्रा के शाप से द्विज का चक्रिवान्/रासभ होना), वामन ५५.७०(रासभ/गर्दभ पर सवार चण्डमारी देवी द्वारा चण्ड - मुण्ड का पीछा ), महाभारत अनुशासन २७.१४(रासभी द्वारा मतङ्ग को ब्राह्मण न होकर चाण्डाल कहना, उसके जन्म का बोध कराना), लक्ष्मीनारायण १.५६०.६५(हविर्धान – पत्नी सुतेजा व हरिकेश ब्राह्मण का शाप से गर्दभ – गर्दभी होना, रेवागर्दभी संगम में स्नान से मुक्ति), ३.२२५ raasabha/ rasabha

 

राहु अग्नि ३.१४(मोहिनी रूप विष्णु द्वारा देवों को अमृत पिलाने पर राहु का चन्द्र रूप धारण करके अमृतपान, सूर्य - चन्द्र द्वारा राहु की पहचान करने पर चक्र द्वारा मस्तक छेदन, श्रीहरि की कृपा से राहु को अमरता प्राप्ति - हरिणाप्यरिणा च्छिन्नं(१) स राहुस्तच्छिरः पृथक् ।.. राहुर्मत्तस्तु चन्द्रार्कौ प्राप्स्येते ग्रहणं ग्रहः ।), १२३.१०(राहु चक्र से फल विचार), १२५.३३(राहु चक्र से युद्ध में फल विचार), १२६.५(राहु चक्र में नक्षत्र न्यास से फल विचार), १४२.८(वार राहु, फणि राहु, तिथि राहु, विष्टि राहु आदि का निर्णय व कर्म में त्याग), देवीभागवत ८.१६, पद्म ४.१०.१९(राहु द्वारा पीयूष का पान, विष्णु द्वारा शिर कर्तन का उल्लेख - पीयूषभक्षणं राहुर्यावत्कुर्याद्द्विजोत्तम ।.. शिरस्तस्य पपातोर्व्यां केतुर्नाम्ना बभूव ह ), ६.१०.९(सिंहिका - पुत्र, जालन्धर - दूत, शिव के समीप प्रेषण, राहु द्वारा जालन्धर के सन्देश का कथन), ६.९९.१७(वही, शिव के भ्रूमध्य से नि:सृत पुरुष द्वारा राहु भक्षण का उद्योग, राहु की शिव से रक्षा हेतु प्रार्थना, पुरुष द्वारा राहु का मोचन, बर्बर देश में पतन - वदत्येवं तदा राहौ भ्रूमध्याच्छूलपाणिनः । अभवत्पुरुषो रौद्रस्तीव्राशनिसमस्वनः ।।), ब्रह्म २.३६.२७(राहु द्वारा सोमपान के लिए मरुत रूप धारण, भद्रकाली द्वारा भूमि पर पतित राहु की देह के नाश का उद्योग, देह रस से प्रवरा नदी की उत्पत्ति - कामरूपधरो राहुर्मरुतां मध्यमाविशत्।। मरुद्रूपं समास्थाय पानपात्रधरस्तथा।), २.७२.३(सिंहिका - पुत्र, राहु - पुत्र मेघहास के चरित्र का वर्णन - तस्याः पुत्रो महादैत्यो राहुर्नाम महाबलः।..तस्य पुत्रो महादैत्यो मेघहास इति श्रुतः।), भविष्य ३.४.१७.५०(राहु ग्रह : ध्रुव व नभोदेवी – पुत्र - ग्रहभूतः स्थितस्तत्र नभोदेव्यां तदुद्भवः ।। राहुर्नाम तथा घोरो महाग्रह उपग्रहः ।।), ३.४.२३.११०(सिंहिका - पुत्र, कलि का अंश - आभीरी सिंहिका नाम सिहमांसाशना खला ।। तस्या योनौ समागम्य राहुर्नाम स चाभवत् ।), ३.४.२५.४१(राहु की ब्रह्माण्ड के लिङ्ग से उत्पत्ति, भौम मन्वन्तर की रचना - ब्रह्माण्डलिङ्गतो जातो राहुश्चाहं तव प्रियः । मया भौमं कृतं नाथ नमस्ते मनुरूपिणे । ।), भागवत ५.२४(राहु की ग्रहों के बीच स्थिति - अधस्तात्सवितुर्योजनायुते स्वर्भानुर्नक्षत्रवच्चरतीत्येके योऽसावमरत्वं ग्रहत्वं चालभत भगवदनुकम्पया), ८.९.२४(राहु/स्वर्भानु दैत्य द्वारा देव वेश धारण कर अमृत का पान, सूर्य - चन्द्र द्वारा श्री हरि को सूचन, हरि द्वारा चक्र से राहु का शिर छेदन - प्रविष्टः सोममपिबत् चन्द्रार्काभ्यां च सूचितः ॥ चक्रेण क्षुरधारेण जहार पिबतः शिरः । ), मत्स्य ९३.१४(राहु ग्रह का अधिदेवता काल होने का उल्लेख - शनैश्चरस्य तु यमं राहोः कालं तथैव च।। केतौर्वै चित्रगुप्तञ्च सर्वेषामधिदेवताः।), १७१.६०(सिंहिका - पुत्र, एक ग्रह), १७३.२४(एक महान् ग्रह, दैत्यों के पक्ष में युद्धार्थ उपस्थित - स्वर्भानुरास्ययोधी तु दशनौष्ठे क्षणायुधः ।। हसंस्तिष्ठति दैत्यानां प्रमुखे स महाग्रहः।), वामन ६८.३५(अन्धक - सेनानी, गणेश से युद्ध - ततो गणेशः कलशध्वजस्तु प्रासेन राहुं हृदये बिभेद।), विष्णु ४.८.१(राहु की दुहिता से पुरूरवा - पुत्र आयु का विवाह, नहुष आदि ५ पुत्रों को जन्म देना - पुरूरवसो ज्येष्ठः पुत्रो यस्त्वायुर्नामा स राहोर्दुहितरमुपयेमे। तस्यां च पंच पुत्रानुत्पादयामास ), विष्णुधर्मोत्तर १.३७+, १.४०(साल्व - अग्रज राहु का आगमन, राहु के शिर छेदन का प्रसंग, राहु द्वारा साल्व को युद्ध न करने का परामर्श - एतस्मिन्नेव काले तु साल्वस्य च महात्मनः ।। शीर्षमात्रावशिष्टस्तु ददृशे चाग्रजस्य च ।।), १.४०(राहु का साल्व से अनंगत्व और ग्रहत्व प्राप्ति का वृत्तान्त?), १.४२(राहु द्वारा छद्म रूप में अमृत पान की कथा, राहु का पूज्यत्व - स्नाने जाप्ये तथा होमे दाने श्राद्धे सुरार्चने ।।  पुण्यः स कालो भविता नित्यमेवाऽसुरेश्वर ।।), १.१०६.९२(राहु के जन्म का कथन), स्कन्द १.१.१२.६२(राहु और केतु नामक दैत्यों का अमृत हेतु देवों की पंक्तियों में बैठना, सूर्य - चन्द्र द्वारा अभिज्ञान पर विष्णु द्वारा राहु का शिर छेदन - शिरो गगनमापेदे कबंधं च महीतले॥ भ्रममाणं तदा ह्यद्रींश्चूर्णयामास वै तदा॥), १.१.१३.२९(राहु का चन्द्रमा से युद्ध- सोमेन सह राहुश्च युद्धं चक्रे सुदारुणम्॥राहुणा चन्द्रदेहोत्थममृतं भक्षितं तदा॥), १.१.१३.३२(शिव द्वारा राहु की मुण्डमाला का आवेष्टन - एकपद्येन तेषां च स्रजं कृत्वा मनोहराम्॥बबंध शंभुः शिरसि शिरोभूषणवत्कृतम्॥), १.२.१३.१६९(शतरुद्रिय प्रसंग में राहु द्वारा रामठ लिङ्ग की पूजा का उल्लेख - राहुश्च रामठं लिंगं नाम गम्येति कीर्तयन्॥), २.४.१७(राहु का जालन्धर - दूत बनकर शिव के पास गमन), ५.१.४४.२०(विष्णु द्वारा राहु का शिर छेदन करने पर रक्तस्राव के स्थल पर राहु तीर्थ का निर्माण, राहु दर्शन से राहु पीडा की अप्राप्ति - राहुकायात्समुद्भूतं बहु सुस्राव शोणितम् ।।तस्मिन्क्षेत्रे महत्तीर्थं जातं तद्दोषनाशनम् ।।), ६.२१०.४०(राहु का देव रूप धारण करके अमृत पान, वासुदेव के आदेश से दैत्यों का परित्याग कर देव सम्मत होकर ग्रह मण्डल में स्थिति - यावन्मात्रं शरीरं तत्तस्य व्याप्तं महीपते ॥), ६.२५२.३७ (चातुर्मास में राहु की दूर्वा में स्थिति का उल्लेख - राहुणा स्वीकृता दूर्वा पितॄणां तर्पणोचिता॥), ७.१.५०(राहु लिङ्ग का माहात्म्य - शनैश्चरेश्वराद्देवि वायव्ये संप्रतिष्ठितम् ॥ अजादेव्याश्चोत्तरतो धनुषां सप्तके स्थितम् ॥), हरिवंश ३.३०.३०(समुद्रमन्थन से निकले अमृत को राहु द्वारा पीने की चेष्टा, श्रीहरि द्वारा शिरश्छेदन का उल्लेख - चिच्छेदाथ हरिः संख्ये राहोश्चक्रेण कं तदा ।), ३.३७.१६(उत्पातों के प्रभु के रूप में राहु का उल्लेख - सिंहिकातनयो यस्तु राहुर्नाम महासुरः ।।उत्पातानामनेकानामशुभानां प्रभुः कृतः ।। ), ३.५१.४३(बलि - सेनानी राहु के रथ का वर्णन - मयेन विहितो दिव्यस्तस्य केतुर्हिरण्मयः ।मयूरपक्षसंकाशं कवचं चायसं महत् ।।), ३.५३.१९(राहु का अजैकपाद रुद्र से युद्ध - राहुस्तु विकृताकारः शतशीर्षा महोदरः । अजैकपादेन रणे सहायुध्यत दंशितः ।। ), ३.५८.५३(अजैकपाद नामक रुद्र का राहु के साथ युद्ध - तत्रैव युध्यते रुद्रो द्वितीयो राहुणा सह । विश्रुतस्त्रिषु लोकेषु क्रोधात्मा ह्यज एकपात् ।।), महाभारत भीष्म १२.४०(सूर्य व चन्द्र की अपेक्षा स्वर्भानु का अधिक विस्तार - परिमण्डलो महाराज स्वर्भानुः श्रूयते ग्रहः । योजनानां सहस्राणि विष्कम्भो द्वादशास्य वै ।।), योगवासिष्ठ १.१५.७(शम रूपी चन्द्रमा के लिए राहु की अहंकार से उपमा - शमेन्दुसैंहिकेयास्यं गुणपद्महिमाशनिम् । साम्यमेघशरत्कालमहंकारं त्यजाम्यहम् ।।), वा.रामायण ६.७१.१७(रावण - सेनानी अतिकाय के ध्वज में राहु का चिह्न - ध्वजशृङ्गप्रतिष्ठेन राहुणाभिविराजते।), ७.३५.३२(शिशु रूप हनुमान का बाल सूर्य को फल समझकर उसे पाने के लिए सूर्य के समीप गमन, सूर्य के समीपस्थ राहु का हनुमान को देखकर भय से इन्द्र के समीप पलायन, पुन: राहु को फल समझकर खाने के लिए हनुमान के उद्धत होने पर राहु का क्रन्दन - यमेव दिवसं ह्येष ग्रहीतुं भास्करं प्लुतः । तमेव दिवसं राहुर्जिघृक्षति दिवाकरम् ।।), लक्ष्मीनारायण १.९२.६०(वाक्यार्थज्ञो राहुनामा जानन्वै स्वामृतं मृषा ॥..उपविष्टो देवपंक्तौ मध्ये चन्द्रार्कयोः क्रमात् ॥), १.३२५.४(जलंधरोऽतिसंहृष्टोऽपश्यद्राहुं शिरो विना ।। ..केनेदं कर्तितं राहोश्छिरो ब्रूहि कथं कदा ।।), १.४६४(सूर्यताप से रक्षा हेतु सर्पों द्वारा राहुग्रहणकाल में अश्व का वेष्टन -  पणीकृत्य तथा कद्रूः कर्बुरं प्राह वाजिनम् । विनता धवलं प्राह ततो ययतुः स्वालयम् ।।.. समाहूय समर्च्याऽपि सूर्यतापविनाशकम् । सुयोजनं समादिश्य पर्वणि राहुणाऽऽवृतम् ।।), ३.३२.४८(रस भक्षक इलोदर असुर का पिता - रसादः सर्वतत्त्वानां रसभक्षक उल्बणः । राहोः पुत्रोऽसुरकर्मा स्वर्गभूरसभक्षकः ।। ) raahu/ rahu

Comments on Rahu 

 

रिङ्गा लक्ष्मीनारायण २.१९५

 

रिटि द्र. भृङ्गिरिटि

 

रिपु पद्म २.१२.१२(रिपु - पुत्र लक्षण का कथन), ५.६७.३९(रिपुताप : अङ्गसेना - पति), द्र. वंश ध्रुव

 

रिपुजित् नारद १.७, वामन ५९.२(रघुकुल के एक राजा, ऋतध्वज - पिता), ७२.६३(रैवत मन्वन्तर के राजा, सूर्याराधन से सुरति नामक कन्या की प्राप्ति )ripujit

 

रिपुञ्जय मत्स्य ४.३९(शिष्ट एवं सुच्छाया से रिपुञ्जय की उत्पत्ति, रिपुञ्जय एवं वीरिणी से चाक्षुष मनु की उत्पत्ति), स्कन्द ४.१.३९.३५(रिपुञ्जय द्वारा काशी में तप, नागकन्या अनङ्गमोहिनी से विवाह, दिवोदास नाम प्राप्ति), ५.२.३७(रिपुञ्जय द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु गणेश रूपी शिव लिङ्ग की आराधना), ५.२.७४(ब्रह्मा से राज्य मिलने पर रिपुञ्जय द्वारा वसुधा का पालन, शिव के राज्य में आने परपूजा, राजस्थल लिङ्ग नाम), हरिवंश २.९७.३६(ऐरावत - पुत्र ), द्र. वंश ध्रुव ripunjaya

 

रिष्ट हरिवंश १.५४.७३(दिति का पुत्र, कंस के वाहन हाथी के रूप में उत्पन्न ) rishta

 

रिष्यन्त द्र. नरिष्यन्त

 

रीति अग्नि ३४०(काव्य में रीति भेद का निरूपण )

 

रुक्म गरुड २.३०.५६/२.४०.५६(मृतक के ह्रदय में रुक्म देने का उल्लेख), स्कन्द १.१.८.२३(कुबेर द्वारा रौक्म लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख )rukma

 

रुक्मकवच मत्स्य ४४.२५(कम्बलबर्हिष् - पुत्र, रुक्मेषु प्रभृति ५ पुत्रों के पिता, क्रोष्टु वंश), वामन ९०.२४(शोण में विष्णु का रुक्मकवच नाम )

 

रुक्मरेखा देवीभागवत ६.२१.३७(रैभ्य - भार्या, एकावली - माता )

 

रुक्मवती स्कन्द ७.१.२२२(रुक्मवती लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश २.६१(रुक्म - पौत्री, अनिरुद्ध से विवाह ), लक्ष्मीनारायण ३.३५.२१ rukmavatee/ rukmavati

 

रुक्माङ्गद गणेश १.२७.२२(भीम - पुत्र), १.२८.१(रुक्माङ्गद का वाचक्नवि ऋषि के आश्रम में प्रवेश, मुकुन्दा की कामासक्ति की उपेक्षा, कुष्ठग्रस्त होना), १.३६.७(इन्द्र द्वारा रुक्माङ्गद का रूप धारण करके काम विह्वल मुकुन्दा के साथ रमण), नारद २.३(एकादशी माहात्म्य के संदर्भ में रुक्माङ्गद की कथा का आरम्भ , २.१०(वैदिश - राजा, सन्ध्यावली - पति, धर्माङ्गद - पिता, मृगया हेतु वन गमन, वामदेव मुनि से पत्नी व पुत्र की प्रशंसा, स्व - उत्कर्ष का कारण पूछना), २.११(पूर्व जन्म में शूद्र, अशून्य शयन व्रत के प्रभाव से राजा बनना, मन्दराचल पर गमन, मोहिनी पर आसक्ति), २.१२.२०(ऋतध्वज - पुत्र, मोहिनी से विवाह), २.३४(एकादशी व्रत निर्वाह के लिए रुक्माङ्गद द्वारा पुत्र धर्माङ्गद के वध की चेष्टा, पत्नी व पुत्र सहित भगवान् के विग्रह में लीन होना), पद्म २.२२.७(ऋतध्वज - पुत्र, सन्ध्यावली - पति, धर्माङ्गद - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.२८५+, १.३७८ rukmaangada/ rukmangada

 

रुक्मिणी गर्ग १.३.३६(लक्ष्मी का अवतार), ६.४(रुक्मिणी के कृष्ण से विवाह का वर्णन), देवीभागवत १२.६.१३३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ६.२४७.२२(रुक्मिणी द्वारा कृष्ण के पास द्विज दूत का प्रेषण आदि), ६.२४८(रुक्मिणी के विवाह का वर्णन), ब्रह्म १.९१(रुक्मिणी के कृष्ण से विवाह का प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१२०(साक्षात् कमला का भीष्मक व वैदर्भी के उदर में जन्म, कृष्ण द्वारा पाणिग्रहण), ४.१०५(भीष्मक - पुत्री, कृष्ण से विवाह), भागवत १०.५२(कृष्ण से विवाह के लिए रुक्मिणी द्वारा ब्राह्मण दूत का प्रेषण, रुक्मिणी हरण की कथा), १०.६०(रुक्मिणी द्वारा कृष्ण का पति रूप में चुनाव करने में तथ्य), १०.८३.८(रुक्मिणी द्वारा द्रौपदी से स्व - विवाह प्रकार का वर्णन), मत्स्य ४७.१५(रुक्मिणी के पुत्रों के नाम), विष्णु ५.२६(कृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.८५.७४(रुक्मिणी की मूर्ति का रूप), स्कन्द २.८.७.२०(रुक्मिणी कुण्ड का माहात्म्य), ३.१.२२.१९(सीता का अवतार), ५.३.१४२(रुक्मिणी तीर्थ का माहात्म्य, रुक्मिणी के विवाह की कथा), ५.३.१९८.७६(द्वारवती में देवी का रुक्मिणी नाम से वास), ७.१.३३२(गृह भङ्ग से मुक्ति हेतु रुक्मिणी देवी का माहात्म्य), ७.४.२(दुर्वासा के रथ का वाहन बनकर रुक्मिणी द्वारा दुर्वासा का वहन, तृषार्त्त होने पर जलपान पर दुर्वासा का शाप, नारद व कृष्ण द्वारा रुक्मिणी के दुःख का मोचन), ७.४.३(कृष्ण से वियोग पर रुक्मिणी द्वारा आत्महत्या की चेष्टा, कृष्ण द्वारा निवारण),  ७.४.९(रुक्मिणी ह्रद का माहात्म्य), ७.४.२२(रुक्मिणी पूजा का माहात्म्य), हरिवंश २.४७, २.४८+ (कैशिक - पुत्री, रुक्मी - स्वसा, कुण्डिनपुर में स्वयंवर का प्रसंग), २.५९(कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का हरण), २.६५(रुक्मिणी द्वारा कृष्ण से पारिजात पुष्प का ग्रहण, नारद द्वारा रुक्मिणी की प्रशंसा), २.८१.३९(उमा के वरदान के अनुसार रुक्मिणी द्वारा व्रत का अनुष्ठान), २.१०३(कृष्ण - भार्या, पुत्रों के नाम), ३.७३.१८ (रुक्मिणी की श्रीकृष्ण से पुत्र हेतु प्रार्थना, पुत्र हेतु कृष्ण का कैलास पर जाकर शिव को संतुष्ट करने का विचार ), लक्ष्मीनारायण १.२२३.२५(भूमि से निर्गत गंगाजल के रुक्मिणी रूप होने का कथन), १.२३० rukminee/ rukmini

 

रुक्मी गर्ग ६.७(कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह में रुक्मी का कृष्ण से युद्ध व पराजय, रुक्मी द्वारा कुण्डिन पुर का त्याग, भोजकट नगर का निर्माण), ब्रह्म १.९२(रुक्मी की बलदेव से द्यूत क्रीडा, बलदेव द्वारा रुक्मी का वध), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०५(भीष्मक - पुत्र, रुक्मिणी - भ्राता, कृष्ण के रुक्मिणी से विवाह पर आपत्ति), भागवत १०.५४(रुक्मी द्वारा कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह का विरोध, कृष्ण से युद्ध, घायल होना, भोजकट नगर का निर्माण), १०.६१(रुक्मी की बलराम से द्यूत क्रीडा, छल व मृत्यु), विष्णु ५.२८(द्यूत क्रीडा में बलराम द्वारा रुक्मी का वध), स्कन्द ७.४.१७.४५(रुक्मि : भीष्मक - पुत्र, रुक्मिणी - भ्राता, रुक्मिणी की इच्छानुसार कृष्ण द्वारा रुक्मि को पार्षदों में प्रधान पार्षद बनाना), हरिवंश २.३६.२(रुक्मी का कृष्ण से युद्ध), २.६०(कृष्ण द्वारा रुक्मी को पराजित करना), २.६१(बलराम द्वारा रुक्मी का वध), लक्ष्मीनारायण ३.३५, rukmee/ rukmi

 

रुक्मेषु द्र. ब्रह्मेषु(वायु ९५.२९/२.३३.२९)

 

रुचि गरुड १.८७.५१(रौच्य मनु के पुत्रों के नाम), १.८८+ (पितरों द्वारा रुचि प्रजापति को दार संग्रह का परामर्श, रुचि द्वारा कन्या प्राप्ति हेतु तप व पितरों की स्तुति, मानिनी से विवाह, रौच्य मनु की उत्पत्ति का वृत्तान्त), १.८९, १.९०(रुचि का प्रम्लोचा व पुष्कर - कन्या मानिनी से विवाह, रौच्य पुत्र की उत्पत्ति), देवीभागवत ८.३.१२(प्रजापति, स्वायम्भुव मनु की कन्या आकूति से विवाह, यज्ञपुरुष की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२३(एकादश रुद्रों में से एक),

१.८.२५(गोलोकनाथ कृष्ण के मुख से रुचि की उत्पत्ति का उल्लेख), १.१०.११( शाण्डिल्य के रुचि-पुत्र होने का उल्लेख), १.२२.२०(तप में चित्त के रोचन के कारण रुचि नाम धारण), ब्रह्माण्ड २.३.७.२४(रुचि नामक अप्सरा गण की विद्युत से उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत २.७.२(प्रजापति, आकूति - पति, रुचि व आकूति के गर्भ से श्रीहरि द्वारा सुयज्ञ रूप में अवतार ग्रहण), ४.१.३(प्रजापति, रुचि व आकूति से यज्ञ व दक्षिणा की उत्पत्ति), मार्कण्डेय ९५(रुचि का पितरों से संवाद), ९८(रुचि का मालिनी से विवाह), लिङ्ग १.७०, वायु ९.१००(ब्रह्मा का मानस पुत्र, स्वदेह से ऋषियों की सृष्टि करना), विष्णु १.७.१९(प्रजापति, स्वायम्भुव मनु की कन्या आकूति से विवाह), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२२.१२८+ (कुबेर द्वारा अष्टावक्र को रोच मास के ३० रोचों में उपवास व विभिन्न देवों की अर्चना के फल का वर्णन), शिव ७.२.४.४९(भव नामक शिव का रूप), लक्ष्मीनारायण ३.९३.४(देवशर्मा-पत्नी, गुरु की अनुपस्थिति में शिष्य विपुल द्वारा योगबल से रुचि की इन्द्र से रक्षा करने का वृत्तान्त), ३.१५७(रुचि द्वारा ब्रह्मचर्य का प्रतिपादन, पितरों द्वारा रुचि को गार्हपत्य के लाभों का कथन, रुचि-कृत पितृस्तोत्र  ), कथासरित् ११.१.६(रुचिरदेव : वैशाखनगर के राजा के दो सौतेले पुत्रों रुचिरदेव व पोतक की कथा), १५.२.१२३(रुचिदेव : वत्सराज का एक प्रतीहार ), द्र. वररुचि, विरोचन, सुरुचि, वसुरुचि ruchi

 

रुचिमती गर्ग ७.५०(पिण्डारक तीर्थ में जाकर उग्रसेन का रुचिमती के साथ यज्ञ हेतु अवभृथ स्नान), १०.१०.१७(उग्रसेन - भार्या, उग्रसेन द्वारा रुचिमती को अश्वमेध यज्ञ करने के विषय में सूचित करने पर रुचिमती की पुत्र हेतु प्रार्थना ) ruchimatee/ ruchimati

 

रुचीक शिव ३.५.२२(१८वें द्वापर में शिखण्डी नामक शिवावतारों के पुत्रों में से एक )

 

रुजा नारद १.९१.७६(वामदेव शिव की प्रथम कला),

 

रुटाण लक्ष्मीनारायण ३.२२९,

 

रुण्ड स्कन्द ४.२.७०.८६(महारुण्डा देवी का संक्षिप्त माहात्म्य )