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श्री विश्वम्भर देव शास्त्री के जीवन की विशेष घटनाएं

जन्मतिथि : मार्च १९२९ ई.

जन्म स्थान : मजगांव, पौडी गढवाल, उ.प्र.(अब उत्तरांचल)

शिक्षा ग्रहण : प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात् राष्ट्रीय संस्था गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर से शास्त्री पदवी की प्राप्ति। १९४० से १९४२ तक गुरुकुल हापुड में रहे। १९४२ की क्रान्ति में सक्रिय योगदान दिया और पुलिस वारण्ट को झेला। भूमिगत हो खुर्जा संस्कृत विद्यालय से आन्दोलन में सक्रिय रहे। १९४६ में कांग्रेस के मेरठ अधिवेशन में सेवारत रहे। दो वर्ष एन.आर.सी. कालेज में रहे।

शैक्षणिक योग्यता : हिन्दी, संस्कृत में एम.ए., बी.एड., शास्त्री

शिक्षण : गुरुकुल महाविद्यालय, हरिद्वार में ५ वर्ष तक शिक्षक। १९५१ से १९८६ तक एच.ए.वी. इण्टर कालेज, देवबन्द में संस्कृत प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। आर्य समाज मन्दिर में दयानन्द बाल मन्दिर एवं नगर में डी.ए.वी. विद्यालय प्रारम्भ कराया।

सामाजिक क्षेत्र : सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में रुचि। स्वतन्त्रता से पूर्व १९४० में हापुड गुरुकुल में कांग्रेस सेवा दल का प्रशिक्षण प्राप्त किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय योगदान रहा। १९४२ की क्रान्ति में भूमिगत रहे। विचारधारा आर्यसमाजी होने से आर्यसमाज देवबन्द का पुनर्निर्माण कर स्थान-स्थान पर पर्यावरण प्रदूषण कम करने हेतु यज्ञों का आयोजन करते रहे। अनेक शैक्षणिक संस्थाओं में अवैतनिक योगदान देते हैं। नवयुवकों से राष्ट्रीय तथा नैतिक और शारीरिक विकास हेतु जनपद सहारनपुर में आर्यवीर दल शिविर लगाकर युवकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। संस्कृत और संस्कृति के प्रचार-प्रसार, सामाजिक जन कल्याण एवं सुधार के कार्यों में हर समय तत्पर।

लेखन व पत्रकारिता : प्रायः सभी मुख्य उपनिषदों की लघु व्याख्या कर प्रकाशित कराई। हिन्दी में वैदिक सूक्तों(पुरुष सूक्त, रक्षोघ्न सूक्त, पृथिवी सूक्त) की व्याख्या की। संकट मोचन नामक पुस्तक का लेखन कार्य जो काफी सफल एवं फलदायी है। अग्निपथ के पथिक पुस्तक हाल ही में प्रकाशित। गौ गीता तथा भारत गौरव गाथा पुस्तकें प्रकाशनाधीन।

सम्मान : संस्कृत अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित प्रथम वेद महासम्मेलन, अल्मोडा विसर महादेव में मानव संसाधन एवं विकास मन्त्री श्रीमान् मुरली मनोहर जोशी जी के द्वारा आपको २६-३-२००२ ई. को सम्मानित किया गया।

 

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